कहानी

आख़री ख़त

वेद प्रकाश जी आज 90 वर्ष के हो गए थे। दो बेटे, बहुएँ, पोते पोतीआं और आगे उन के भी बच्चे, काफी बड़ा परिवार था। घर में ही बर्थडे पार्टी का इंतज़ाम किया गया था। सारा घर दुल्हन की तरह सजा हुआ था। बहुत बड़ा केक था और केक पर वेद प्रकाश जी और उन की पत्नी निर्मला की शादी के वक्त की स्टूडियो में खींची हुई ब्लैक ऐंड वाइट फोटो थी। केक काटा गया,पटाखे बजाये गए, सभी ने केक बज़ुर्ग वेद प्रकाश जी के मुंह को लगाया और जनम दिन धूम धाम से मनाया गया। बस एक ही कमी थी, वेद प्रकाश जी की पत्नी चालीस साल पहले ही भगवान् के घर चले गई थी। बड़े टेबल पर सजे ढेर से तरह तरह के खाने, सभी ने हंस हंस कर बातें करते हुए खाये। देर रात हो गई थी और सभी बच्चे अपने अपने घर चले गए। वेद प्रकाश जी छोटे बेटे के साथ रहते थे लेकिन कभी वोह बड़े बेटे के घर चले जाते और कभी किसी पोते के घर चले जाते। वेद प्रकाश जी के लिए यह संसार सवर्ग ही था। रात को सोते वक्त, कभी कभी उन को खांसी भी आती तो बेटा या बहु भागे भागे आते और पूछते, ” बाबू जी, आप ठीक हैं “, हाँ हाँ, ठीक हूँ बेटा, जाओ आराम करो बेटा, वोह बोलते। उन का अपना कमरा बैड रूम भी था और स्टडी रूम भी। यह कमरा उन के लिए बहुत कुछ था। यहां वोह देर रात तक पड़ते रहते और कुछ लिखते भी रहते।
वेद प्रकाश जी की सिहत अभी भी बहुत अछि थी। वोह शुरू से ही अपने खान पान का बहुत धियान रखते थे और रोज़ाना सैर को जाते थे और कमरे में आ कर योगाभ्यास करते थे। सभी बच्चों को गियात था कि वेद प्रकाश जी और उन की माँ निर्मला का आपस में बहुत प्रेम हुआ करता था, इसी लिए उन की रचनाओं में निर्मला नाम बार बार आता था। आज रात जब सभी बच्चे सोने के लिए चले गए तो वेद प्रकाश जी कमरे में आ कर अपनी पत्नी की फोटो की तरफ धियान से देखने लगे। कुछ देर देखते रहे, फिर बोले, देख निर्मला ! हमारा परिवार मेरा कितना खियाल रखता है। मुझ को दी हुई तेरी उम्र, कितने मज़े से जी रहा हूँ। मैं उदास नहीं हूँ बल्कि बहुत खुश हूँ क्योंकि तू अब भी मेरे साथ ही हैं। याद है ! जिस दिन तू पचास वर्ष की हुई थी और हम बच्चों के साथ बाहर खाने के लिए गए हुए थे तो होटल के नज़दीक कर्जन पार्क में गुलाब का एक फूल तोड़ कर मैं तुम्हारे बालों को लगा रहा था, तो गुलाब का काँटा मेरे हाथ में चुभ गया था और मेरे मुंह से ओह मर गए शब्द निकल गया था और तू ने झट्ट से मेरे मुंह पर अपना हाथ रख दिया था और बोली थी, ” कभी भूल कर भी ऐसे शब्द मुंह से नहीं निकालना, मेरी उम्र आप को लग जाए, फिर ऐसे बोला तो मैं आप से बोलूंगी नहीं “, किया पता था, इस के कुछ महीने बाद ही तू मुझे अपनी उम्र मेरे सपुर्द करके चली जायेगी। अब वेद प्रकाश जी की आँखों में आंसू आ गए और बिस्तर पर आ के लेट गए, रेडिओ ऑन कर दिया और धीमा धीमा संगीत सुनने लगे।
अतीत में खोये हुए वोह सोचने लगे, जब पहली दफा उन की मुलाकात निर्मला से हुई थी और वोह भी बहुत ही अजीब ढंग से। कालज से आते हुए वेद प्रकाश ने देखा, एक बहुत ही सुन्दर लड़की एक बूढ़े भिखारी, जिस के हाथ नहीं थे, उस को अपने हाथों से खाना खिला रही थी। वेद प्रकाश हैरान हुआ टिकटिकी लगाए उस लड़की को देखता रहा। कुछ देर बाद खाना ख़तम होते ही वोह लड़की अपना थैला उठाये चलती बनी। वेद प्रकाश बुत्त बना बहुत देर वहीँ खड़ा रहा। क्योंकि वेद प्रकाश के खियाल भी ऐसे ही थे, इस लिए लड़की उस के मन को भा गई। कुछ महीने बाद एक शादी में उन का आमना सामना उस लड़की से हो ही गया। दुल्हन लड़की, दूर से वेद प्रकाश की बहन लगती थी और उस वक्त वोह लड़की उस की बहन से हंस हंस बातें कर रही थी। हिचकिचाता हुआ वेद प्रकाश वहां पहुँच गया और पहले अपनी बहन को नमस्ते दीदी बोला और फिर उस लड़की को हाथ जोड़ कर नमस्ते बोला। कुछ ही मिनटों में वोह तीनों खुल कर बातें करने लगे। अब वेद प्रकाश ने अपने मन की बात कह ही डाली और बोला, ” एक दिन मैंने आप को एक भिखारी को खाना खिलाते देखा था “, ” आप कहाँ थे उस वक्त, मैंने तो आप को देखा नहीं था “, लड़की निर्मला बोली। वेद प्रकाश बोला, ” सच बताऊँ, उस वक्त आप ने मुझे इतना परभावत किया कि मैं अपने आप को भूल ही गया क्योंकि आज तक मैंने ऐसा कभी नहीं देखा था कि एक सुन्दर लड़की भरे बाजार में किसी भिखारी को खाना खिला रही हो, आप से बात करने को मन चाह रहा था लेकिन किया बोलता, सोच कर आप को बस देखता ही रहा “, निर्मला कुछ झेंप सी गई। बस, यह छोटी सी मुलाक़ात ने उन दोनों के दरमिआन पियार का बीज अंकित कर दिया था।
दिन बीतते गए और वेद प्रकाश निर्मला को ढूंढ़ने की कोशिश करता रहता, कभी मुलाकात हो जाती, कभी नहीं लेकिन यहाँ चाह हो वहां राह तो निकल ही आता है। वोह समय अभी इतना उदारदिल नहीं था, इस लिए यह मुलाकातें छुप छुप कर होने लगी। फिर दोस्तों सखिओं के माधयम से प्रेम पत्र शुरू हो गए। बहुत देर ऐसे चलता रहा, वेद प्रकाश की पढ़ाई भी ख़तम हो गई थी और उसे नौकरी भी जल्दी ही मिल गई। अब सवाल शादी का था तो वेद प्रकाश को एक आइडिआ सूझा और वोह अपनी उस बहन के सुसराल जा पहुंचा और उस को मन की बात बताई। बहन ने मदद करने का भरोसा दिलाया और वह एक दिन अपने मायके चले गई और अपनी माँ के साथ बात की तो वोह बोली, बेटी ! यह तो बहुत अच्छी बात हुई क्योंकि अभी कुछ ही दिन हुए निर्मला की माँ मुझे मिलने आई थी। वोह लोग निर्मला के लिए लड़का ढून्ढ रहे हैं और मुझे पूछ रहे थे कि मेरी नज़र में कोई लड़का हो तो बताऊँ। बहन की इस कोशिश से वेद प्रकाश और निर्मला की शादी हो गई। अब वेद प्रकाश और निर्मला जैसे हवा में उड़ने लगे। निर्मला बहुत ही सुन्दर थी और कभी कभी वेद प्रकाश, निर्मला को कहता, ” जरा मेरी तरफ देखो तो “, जब वोह देखने लगती तो वेदप्रकाश टिकटिकी लगाए उसे देखता ही रहता। निर्मला हंस पड़ती और बोलती, ” ऐसे क्यों देखते हो, मुझ में किया है ” तो वेद प्रकाश कहता, ” बस जी चाहता है, तुझे देखता ही रहूं, तू शरबत हो तो तुझे ग्लास में भर कर पी लूँ ” , निर्मला जोर जोर से हंसने लगती। हंसती निर्मला वेद प्रकाश को और भी सुन्दर लगती। समय आगे बढ़ता गया। दो बेटे हो गए। बेटे बड़े होते गए और उन की पढ़ाई के खर्चे भी बढ़ने लगे। ज़िंदगी में पति पत्नी में कभी तकरार ना हो, ऐसा तो हो नहीं सकता लेकिन वेद प्रकाश ने कभी भी तल्ख़ लहजे में पत्नी से बात नहीं की थी। इस के विपरीत, निर्मला कभी कभी गुस्से में आ कर बोलने लगती तो वेद प्रकाश उस की ओर टिकटिकी लगा के देखता रहता और फिर एक दम हंसने लगता। जब निर्मला बोलती कि वोह कोई जबाब देने की बजाये हंस क्यों रहे हैं तो वेद प्रकाश कहता, ” अजी, और झगड़ो क्योकि जब तुम गुस्से में होती हो तो और भी सुन्दर लगती हो “, निर्मला का गुस्सा एक दम ठंडा हो जाता और मुस्करा कर कहती, ” जवाब कोई देते नहीं और हंस कर मेरा गुस्सा बर्बाद कर देते हो “, ऐसे ही ज़िंदगी बीत रही थी।
एक बात निर्र्मला में और थी और वोह थी शुरू से डायरी लिखना। जब वेद प्रकाश पूछता कि इस में रोज़ाना किया लिख रही हो तो वोह जवाब देती, ” यह मैं किसी को नहीं बताउंगी लेकिन आप क्यों नहीं लिखते ?”, ” यह मेरे वश का रोग नहीं है, हाँ, एक बात मेरे मन में आई है कि जब कभी हम प्रेम पत्र लिखा करते थे, तो कैसे कैसे आकाश से तारे तोड़ लाते थे, न जाने कैसे इतना कुछ लिख लेते थे, क्यों ना हम फिर से अपने घर के ऐड्रैस पर ही एक दूसरे को प्रेम पत्र लिखा करें, एक तो हम को लिखना आ जाएगा, एक टाइम अच्छा बीतेगा और तीसरे हमारा प्रेम समय के साथ साथ फीका नहीं पड़ेगा “, हंस कर निर्मला ने हाँ कर दी थी। कुछ महीने बाद वोह एक दूसरे को अपने ही घर के पते पर पत्र डाल देते। धीरे धीरे पत्र लंबे होने लगे, ज़िंदगी और रोमांटिक हो गई। बच्चों की शादीआं हो गई थीं और पोते पोतीओं से घर चहकने लगा था लेकिन यह विधाता को मंज़ूर नहीं था। एक दिन अचानक ही निर्मला को हार्ट अटैक हुआ और हस्पताल में पहुँचने से पहले ही निर्मला सभ को छोड़ कर वहां चली गई, यहां से कभी कोई वापस नहीं आता।
बिस्तर पर लेटे हुए वेद प्रकाश के दिमाग में पुरानी बातें खलबली मचा रही थीं और वोह रोने लगे। कुछ देर रोने के बाद वोह उठे, मन में कुछ आया और टेबल पर जा कर निर्मला को पत्र लिखने लगे, यह जानते हुए भी कि निर्मला अब नहीं है, बस दिमाग में पुरानी यादें उमड आई थी, निर्मला के जाने से पहले, निर्मला का खत ही आया था और जवाब देने की वारी वेद प्रकाश की थी। उन्होंने लिखना शुरू किया, ” प्रिय निर्मला ! जरा आ के देख, मैं कितना सुखी हूँ, तेरी दी हुई उम्र मैंने कितने सुख में बिताई, हमारे सभी बच्चे तेरे जैसे ही हैं, दयावान, आगियाकार और मिहनती। एक बात मैंने तुझे कभी नहीं बताई, याद है,वोह दिन जब तू एक भिखारी को खाना खिला रही थी और मैं तुझे देख रहा था, वोह दिन आज तक मैं एक दिन भी नहीं भूला। जब तू मेरे से कभी कभी खफा होती थी तो मैं हँसता रहता था, बस वोह दिन ही मेरी आँखों के सामने होता था और तू मुझे और भी पियारी लगती थी। पियार जरूरी नहीं कि युवा उम्र की मनॉपली हो, पियार जीवन के अंत समय तक भी हो सकता है, बस नजरिया ऐसा होना चाहिए। हमारे सभी बच्चे, पता है क्यों इतने अच्छे हैं, क्योंकि हम ने ज़िंदगी को हंस हंस के जिया है और हमारे बच्चे यह सब देखते थे, इसे लिए उन्होंने भी यह सब हम से ग्रहण किया है ,,,,,,,,,,,,,,,,,,” वेद प्रकाश लिखते लिखते बहुत सफे लिख गए वोह इस खत में गुम ही हो गए थे। तभी उन की छाती में जोर से दर्द हुआ, जोर से उन के मुंह से आअह्ह्ह निकला और वोह कुर्सी से नीचे गिर पढ़े। खटाक सुन कर बेटा बहु और पोते भागते आये, देख कर घबरा गए। जल्दी से गाड़ी निकालो, बहु बोली। नहीं नहीं बहु, वेद प्रकाश जी तड़पते हुए बोले। अब मेरे पास समय नहीं है, सुनो ! उस ट्रंक में मेरे और तुम्हारी माँ के खत पढ़े हैं और इस में तुम्हारी माँ की डायरी भी है, इन सब को छपवा देना, पढ़ कर किया पता कितनों को ज़िंदगी जीने का रास्ता समझ में आ जाए। वेद प्रकाश जी ने बोलना बंद कर दिया था, सभी रोने लगे और लिखे खत के सफे फर्श पर से उठाने लगे जो वेद प्रकाश जी का आख़री खत था।