आज के कान्हा
आज भी कितनी ही “राधाएँ”,
अपने “कान्हा” की राह तकतीं हैं !
“कान्हा” बैठे मुरली बजाए,
इल्जामों में “राधाएँ ” घिरतीं हैं !!
भगवान बना तू पूजा जाए,
विष मीरा क्यों पीती है !
चैन की बंसी रुक्मिणी संग बाजे,
विरह में राधा जीती है !!
गर तू चाहता तो राधा भी,
“रुक्मिणी” तेरी बन सकती थी !
चाहत थी राधा तेरी तो,
राधा की चाहत में भक्ति थी !!
तेरे अनुयायी बन कितने कान्हा,
“राधाओं” को अब छलते हैं !
त्यागा था तूने राधा को,
राह तेरी वे चलते हैं !!
आज भी कितनी ही राधाएँ,
अपने कान्हा की राह तकती हैं !
“कान्हा” बैठा मुरली बजाए,
इल्जामों में राधाएँ घिरतीं हैं !!
अंजु गुप्ता