गर दिल खुली किताब बन जाता
गर….
ये दिल, इक खुली किताब बन जाता !
तो जिंदगी जीना ही, बेहाल हो जाता !!
बिन बोले पढ़ लेते, सब इक-दूजे का हाल !
बिन बोले ही इक-दूजे से, दिले-इजहार हो जाता !!
बहुत से दिलों के, अरमान भी बिखरते !
क्योंकि दिल खुशफहमी का, शिकार हो ना पाता !!
शुक्र मानो ऐ यारो, दिल खुली किताब नहीं है !
वरना..
ख्वाबों की लाशों में, जीना दुर्भर हो जाता !!
अंजु गुप्ता