कविता : कोई पता बता दे हमको
कोई पता बता दे हमको, ऐसे उस घर द्वारे का
जहाँ न कोई हिन्दू मुस्लिम, न सेवक गुरूद्वारे का।
जहाँ मुझे इंसान मिले, और बोले इंसानो की बोली
मेरे संग वो ईद मनाये, और खेले रंगो की होली
कोई पता बता दे हमको, भर दे खाली ये झोली
मुस्लिम भाई के आँगन से’ उठे हिन्दू बहनो की डोली
मुफ्त नहीं मैं पूछता हूँ, तुम दाम भी लेलो
पैसे लेलो, सांसे लेलो, और तुम मेरा नाम भी लेलो।
ये प्यार नहीं ला सकता मैं, दुनियां के बाजारों से
आज हर कोई ठगा हुआ है, समाज के ठेकेदारो से।
क्या होगा आखिर सच, सपना उस बापू प्यारे का
कोई पता बता दे हमको, ऐसे उस घर द्वारे का
जहाँ न कोई हिन्दू मुस्लिम, न सेवक गुरूद्वारे का।
— सौरभ दीक्षित