कविता

व्यंग्य कविता : उम्र

इजहारे मौहब्बत की कोई उम्र नही होती
लोग तो बुढ़ापे में भी इश्क फरमाते है ।

मुँह में दाँत नही है पर मुर्गा खाने का शौक रखते है,
इस उम्र में भी न जाने क्या क्या शौक  मन में रखते है ।

ये उम्र ही ऐसी होती है दोस्तों ,
पाँव बुढ़ापे की दहलीज पे हे ,और जवान होने का
भ्रम दिल में रखते है ।

कभी मीठा ,कभी खट्टा ,कभी तीखा खाने का मन होता है ,
रोज नई फरमाइश की लिस्ट जुबाँ पे रखते है ।

सूना लगता है  घर -आँगन इन बुजुर्गों के बिना ,
आज भी कई घरों में ये उम्र वाले काफी अहमियत
रखते है ।

सपना परिहार 

सपना परिहार

श्रीमती सपना परिहार नागदा (उज्जैन ) मध्य प्रदेश विधा -छंद मुक्त शिक्षा --एम् ए (हिंदी ,समाज शात्र बी एड ) 20 वर्षो से लेखन गीत ,गजल, कविता ,लेख ,कहानियाँ । कई समाचार पत्रों में रचनाओ का प्रकाशन, आकाशवाणी इंदौर से कविताओ का प्रसारण ।