व्यंग्य कविता : उम्र
इजहारे मौहब्बत की कोई उम्र नही होती
लोग तो बुढ़ापे में भी इश्क फरमाते है ।
मुँह में दाँत नही है पर मुर्गा खाने का शौक रखते है,
इस उम्र में भी न जाने क्या क्या शौक मन में रखते है ।
ये उम्र ही ऐसी होती है दोस्तों ,
पाँव बुढ़ापे की दहलीज पे हे ,और जवान होने का
भ्रम दिल में रखते है ।
कभी मीठा ,कभी खट्टा ,कभी तीखा खाने का मन होता है ,
रोज नई फरमाइश की लिस्ट जुबाँ पे रखते है ।
सूना लगता है घर -आँगन इन बुजुर्गों के बिना ,
आज भी कई घरों में ये उम्र वाले काफी अहमियत
रखते है ।
— सपना परिहार