एक पल…
हाँ !
उस एक पल का ही
दोष था
जब तुम्हारी नजरों ने
मुझे प्यार से देखा था
उसी एक पल ने !
मेरे जीवन के न जाने
कितने खूबसूरत पलों को
चुरा लिया
सच ही तो है !
उस एक पल के बाद
कभी तुम्हारा मेरा
मिलना मुमकिन न हुआ
पर !
उसी एक पल में
मेरी गुस्ताख नजरों ने
तुम्हें अपनी पलकों में
कैद कर लिया
पर जानते हो ?
कैद तो तुम हुए
लेकिन दिनों दिन
छटपटाहट मेरी बढ़ती गई
कई बार कोशिश भी की
मिल जाए मुक्ति मुझे
तुम्हारे यादों से
पर हरबार !
मेरी ये कोशिश नाकाम हुई
वक्त की बढ़ती चाल ने भी
धोखा ही किया मुझसे
कभी मौका नहीं दिया
तुम्हारी यादों से
उबरने का
बल्कि हर मोड़ पर
तुम्हें भूलने की
लगातार कोशिश मेरी
असहाय साबित होती रही
लगता है !
जज्बातों के रिश्ते
इतनी आसानी से
नहीं मिटा करते
शायद, मरने के बाद
अगले जन्म में ही ये
हो पाता है सम्भव।