कविता

कठपुतली

हाँ !
मुझे कठपुतली ही कह लो तुम !
यही सही रहेगा
ना कोई वजूद मेरा
न कोई पहचान है
बस, तुम्हारे इशारों पे
नाचने डोलने वाली
एक खिलौना हूँ मैं

जिसके अनगिनत धागे
फँस गए है
तुम्हारे उंगलियों से जाके
जिसे जब चाहा जैसे चाहा
तुमने घुमाया नचाया !

हाँ !
मुझे कठपुतली ही कह लो तुम !
सच ही तो कह रही
जबतक देख नहीं लेती
तुम्हारे चेहरे की रंगत हाव-भाव
तबतक हिम्मत नहीं होती
लाऊँ अपने होठो पे हंसी

डर लगता है न जाने कब !
बदल जाए तुम्हारा मन मिज़ाज
और पल भर में भारी पड़ जाए
मेरी छोटी सी मुस्कान
हाँ !
मुझे कठपुतली ही कह लो तुम !

*बबली सिन्हा

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