कविता : जिंदगी एक पहेली
अजीब आरजू , जिंदगी की ।
कैसी फितरत है , ये ! रचना ।।
सीख चुके , दर्द से उभर के ।
जिंदगी को , हम अब जीना ।।
न सुलझी , किताब जिंदगी की ।
लिख -लिख के हार गई रचना ।।
सुलझ कर भी , उलझी ही रही ।
जिंदगी है अजीब पहेली रचना ।।
अजीब आरजू , जिंदगी की ।
कैसी फितरत है , ये ! रचना ।।
सीख चुके , दर्द से उभर के ।
जिंदगी को , हम अब जीना ।।
न सुलझी , किताब जिंदगी की ।
लिख -लिख के हार गई रचना ।।
सुलझ कर भी , उलझी ही रही ।
जिंदगी है अजीब पहेली रचना ।।