कविता : हर चेहरे पे नकाब
कट गए तब , हर रिश्तों से ।
हर दिल मे , जब फरेब देखा ।।
रिश्तों के मायने , ना रहे ।
खुद को जब , अपनों में खोते देखा ।।
रिश्तों की गहराई भी अजीब थी ।
इक- दूजे के लिए, जब मिटता देखा ।।
अपने-बेगाने क्या खूब समझे ।
जब-जब हर रिश्ते को करीब से देखा ।।
उठ गया अब , यकिन खुद से भी ।
हर चेहरे पे जब , इक नकाब देखा ।।