कविता

कविता : हर चेहरे पे नकाब

कट गए तब ,  हर रिश्तों से  ।
हर दिल मे ,  जब फरेब देखा ।।

रिश्तों के मायने ,  ना रहे ।
खुद को जब , अपनों में खोते देखा ।।

रिश्तों की गहराई भी अजीब थी ।
इक- दूजे के लिए, जब मिटता देखा ।।

अपने-बेगाने  क्या  खूब समझे ।
जब-जब हर रिश्ते को करीब से देखा ।।

उठ गया अब , यकिन खुद से भी ।
हर चेहरे पे जब ,   इक नकाब देखा ।।

रीना सिंह गहलौत 'रचना'

कवयित्री नई दिल्ली