गज़ल
जब पुकारा आईने में दिख रहे इंसान को,
यूँ लगा कि मिल रहा हूँ मैं किसी अंजान को,
अश्क उसकी आँख में बेसाख्ता आने लगे,
पूछा जब मैंने हुआ क्या है तेरी मुस्कान को,
थक गया हूँ रेत के टीलों सा बनते-टूटते,
आँधियो अब बख्श दो सीने के रेगिस्तान को,
बुज़दिली ना तुम समझ लेना मेरी खामोशी को,
जिद पे आ जाऊँ तो रख दूँ मोड़कर तूफान को,
मुफलिसी हंस के सही कई बार की फाकाकशी,
दाँव पर लेकिन कभी रखा नहीं ईमान को,
मौत आई तो मिलेंगे उससे भी खुलकर गले,
हमने कब मायूस लौटाया किसी मेहमान को,
आभार सहित :- भरत मल्होत्रा।