गीतिका/ग़ज़ल

गज़ल

जब पुकारा आईने में दिख रहे इंसान को,
यूँ लगा कि मिल रहा हूँ मैं किसी अंजान को,

अश्क उसकी आँख में बेसाख्ता आने लगे,
पूछा जब मैंने हुआ क्या है तेरी मुस्कान को,

थक गया हूँ रेत के टीलों सा बनते-टूटते,
आँधियो अब बख्श दो सीने के रेगिस्तान को,

बुज़दिली ना तुम समझ लेना मेरी खामोशी को,
जिद पे आ जाऊँ तो रख दूँ मोड़कर तूफान को,

मुफलिसी हंस के सही कई बार की फाकाकशी,
दाँव पर लेकिन कभी रखा नहीं ईमान को,

मौत आई तो मिलेंगे उससे भी खुलकर गले,
हमने कब मायूस लौटाया किसी मेहमान को,

आभार सहित :- भरत मल्होत्रा।

*भरत मल्होत्रा

जन्म 17 अगस्त 1970 शिक्षा स्नातक, पेशे से व्यावसायी, मूल रूप से अमृतसर, पंजाब निवासी और वर्तमान में माया नगरी मुम्बई में निवास, कृति- ‘पहले ही चर्चे हैं जमाने में’ (पहला स्वतंत्र संग्रह), विविध- देश व विदेश (कनाडा) के प्रतिष्ठित समाचार पत्र, पत्रिकाओं व कुछ साझा संग्रहों में रचनायें प्रकाशित, मुख्यतः गजल लेखन में रुचि के साथ सोशल मीडिया पर भी सक्रिय, सम्पर्क- डी-702, वृन्दावन बिल्डिंग, पवार पब्लिक स्कूल के पास, पिंसुर जिमखाना, कांदिवली (वेस्ट) मुम्बई-400067 मो. 9820145107 ईमेल- [email protected]