ग़ज़ल
वो खामोशियों में भी कुछ सुनाने लगे हैं।
रह रहकर हमें यूंही आज़माने लगे हैं।
मिलते नहीं ख्याल अपने किसी से यूं ;
वो जाने मगर क्यों पास आने लगे हैं।
रातभर चाँद का नभ पर पहरा लगा था;
गली में उनकी जुगनू टिमटिमाने लगे हैं।
छोड़ दो बेवजह ख्वाबों में आना जाना;
हम नींद से यूंही अब कतराने लगे हैं।
तेरी कसम हसीं देखा नहीं तुझ सा कहीं;
मचलती धड़कनों को यह समझाने लगे हैं।
कामनी गुप्ता ***
जम्मू !