धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

गोकशी बनाम धार्मिक आस्था

इस समय गोकशी पूरे देश में एक बड़े और ख़तरनाक विवाद का रूप धारण कर चुकी है । एक पक्ष गाय के मांस ‘ बीफ ‘ को अपना प्रिय आहार बता रहा है , दूसरा पक्ष वह है जो युगों – युगों से उसे ‘ माता ‘ का दर्जा देता आ रहा है । इससे खुलेआम दोनो पक्ष एक -दूसरे के प्राण के दुश्मन बन बैठे है । बड़े – बडें नेता विवादित बयान देकर रोटियाँ सेंक रहे हैं । आम आदमी मार खा रहा है । जब से उत्तर प्रदेश में योगी सरकार आयी और अवैध बूचड़ खानों पर प्रतिबंध लगा व गाय के कत्ल को संज्ञेय अपराध की श्रेणी में डाला गया विरोधियों का होहल्ला मचा है । कोई दिन नहीं बीत रहा जब कोई अनहोनी सुनने को न मिल रही हो । अवैध बूचड़ खाने बंद होने से जैसे तमाम व्यापारियों और उनके आकाओं के हाथ – पाँव फूल गये । नेता भी चिल्ल पौं कर रहे हैं यह कहकर -गरीबों का रोजगार छिन गया । सवाल उठता है कि क्या अवैध कारोबार किसी का रोजगार माना जा सकता है । जिनके पास लाइसेंस हैं वे सब चल रहे हैं । पिछली सरकारें उनके अवैध कारोंबार से आँखें मूँदें हुए थीं तो क्या इसका मतलब अवैध कारोबार किसी का जन्मसि़द्ध अधिकार हो गया । वह तो बंद होना ही चाहिए था । तृणमूल कांग्रेस , डी एम के , कम्युनिस्ट पार्टियाँ , कांग्रेस समेत कई छोटे – मोटे दल मुखर होकर अराजक तत्वों को परोक्ष रूप से उकसा रहे हैं । केरल में तो खुलेआम बीच सड़क पर गाय और बछडे का कत्ल करके ‘ बीफ‘ की दावत देकर दूसरे पक्ष की भावनाओं को चुनौती दी गयी । कम्युनिस्ट नेता सीताराम येचुरी ने यहाँ तक कह दिया कि क्या केन्द्र सरकार तय करेगी कि किसको क्या खाना है ? जिसका जो मन कहेगा वह खायेगा । इसका मतलब तो फिर यह भी हुआ कि कल एक इन्सान दूसरे इन्सान को खाने लगे या प्रतिबंधित पशु- पक्षियों का भी शिकार करके खा जाय । किसी के खाने पर कोई रूकावट नहीं है लेकिन खाने की सीमा तय तो होनी ही चाहिए । आखिर हम इन्सान है पशु नहीं ?
इसके दूसरे पक्ष पर एक नज़र डालते हैं । भारतीय संविधान के अनुसार किसी की धार्मिक – भावना को ठेस पहुँचाने का हक किसी को नहीं । सबको धार्मिक – स्वतंत्रता है । हिन्दू -धर्म में गाय का आदिकाल से विशेष दर्जा रहा है । हिन्दुओं के प्राचीनतम ग्रन्थ – अथर्ववेद में लिखा है ‘‘धेनु सदानाम रईनाम ‘‘ -गाय समृद्धि का मूल स्रोत है । वह सृष्टि के पोषण का भी स्रोत है । वह जननी है । गाय केवल इसलिए ही नहीं महत्वपूर्ण है कि वह दूध देती है । हिन्दू धर्म की यह भी मान्यता है कि जीव 84 लाख योनियों के भ्रमणके बाद अंत में गाय के रूप में जन्म लेता है । जो आत्मा का एक विश्रामस्थल है और नये जीवन का प्रारम्भ फिर यहीं से होता है । हिन्दुओं के दो सबसे बड़े मान्य देवता जिन्हें वह भगवान के रूपमें हजारों साल से पूजते आया हैं – एक श्री राम और दूसरे श्री कृष्ण। इनका नाम गाय के साथ सबसे ज्यादा जुड़ा हुआ है । श्रीराम के कुलगुरू वशिष्ठ की गाय ‘‘ कामधेनु‘‘ से कौन नहीं परिचित ? बाल्मीकि जी ने बाल्मीकि -रामायण में लिखा है कि समुद्र-मंथन में जो चौदह -रत्न निकले थे उनमें से एक ‘‘ कामधेनु‘‘ गाय भी थी । वह जब प्रकट हुई तो काली , श्वेत ,पीली,लाल रंग की सैकड़ों गायें उसे घेरे हुए थीं । जो बाद में उसका परिवार बनीं । श्रेष्ठ तपस्वी होने के नाते अपने तबोबल के आधार पर ‘‘ कामधेनु’’ को वशिष्ठ जी पाने में कामयाब हुए थे। एक बार राजा विश्वामित्र को यह गाय पसंद आ गयी और उन्होने वशिष्ठ से गाय की माँग की । पर , वह देने को राजी नही हुए । विश्वामित्र ने वशिष्ठ पर आक्रमण कर दिया । लेकिन कामधेनु के प्रभाव से विश्वामि़त्र की पूरी सेना मारी गयी और हारकर वह जंगल में तप करने चले गये । और श्री कृष्ण का तो एक नाम ही ‘‘ गोपाल’’ है । महाकवि सूरदास रचित श्रीकृष्ण की सम्पूर्ण ‘‘बाललीला’’ गाय चराने , माखन चुराने , दूध -दही की मटकी फोड़ने पर ही आधारित है । यमुना , गोदावरी , गोमती आदि नदियों का भी गाय से गहरा सम्बन्ध हैं। गोमती का पुराना नाम भी धेनुमती है । इस प्रंकार गाय का नाता यादव वंश के नायक श्री कृष्ण से किस गहराई से जुड़ा है यह किसी को बताने की जरूरत नहीं । अखिलेश यादव भी गाय के सम्मान को जरूर समझते होगें इसलिए अभी तक इस मुद्दे पर उनका कोई विवादित बयान नहीं आया । यादव अत्यन्त धार्मिक और कृष्ण को अपना भगवान मानने वाली जाति है । यादव ही क्यों ? सम्पूर्ण हिन्दू अपने इन दो भगवानों को गाय के साथ जोड़कर देखती है । इसलिए अन्य पशुओं की तरह सामान्य -सी दिखने वाली यह गाय उतनी सामान्य नहीं । हिन्दू रीति के अनुसार मरते समय ‘‘ बछिया‘‘ दान दी जाती है । तभी मरने वाला भवसागर पार कर पाता है ।
अब हम गाय को लेकर इतिहास के कुछ नये पन्ने पलटने के साथ -साथ वर्तमान परिदृश्य पर भी एक नजर डालते हैं । मुगल शासक बाबर जब अपने बेटे हुमायूँ को सत्ता सौंपने लगा तो उससे यही कहा था कि अगर हिन्दुंस्तान पर राज करना है तो गाय का आदर करना नही भूलना । महाराज रणजीत सिंह के समय में गो हत्या पर मृत्यु-दण्ड का प्रावधान था । अंगरेज 1857 के प्रथम स्वतंत्रता- संग्राम की बगावत का स्वाद चख चुके हैं । जब वह बन्दूकों में गाय और सूअर की चर्बी नाल में लगवाकर उसे हिन्दुओं और मुसलमानों को मुँह से खींचने का हुक्म दिये थे । मंगल पाण्डेय के एक इशारे पर पूरी सेना बगावत कर बैठी थी । देश आजाद होने के बाद पं0 जवाहरलाल नेहरू का चुनाव – चिन्ह – दो बैलों की जोड़ी रहा । उन्हे मालूम था इस देश का किसान वह चाहे जिस जाति – धर्म को मानने वाला हो दो बैलों की जोड़ी से भावनात्मक लगाव रखता है । इन्दिरा गाँधी को जब कांग्रेस के कुछ बडे नेता बेदखल करना चाहे और पार्टी में विभाजन हो गया । चुनाव आयेाग ने दो बैलों की जोडी चुनाव चिन्ह जब्त कर लिया तो भी इन्दिरा गाँधी ने गाय और बछड़े को अपना चुनाव चिन्ह बनाया । जिसके दम पर वह कांग्रेस को बुरे से बुरे हालात में जीताती रही । जब से कांग्रेस की नीतियाँ बदलीं , चुनाव – चिन्ह बदला कांग्रेस का बुरा दिन आ गया । क्या आगे भी अपने अतीत को ताक पर रखकर कांग्रेस इसी तरह तथाकथित राजनैतिक लाभ के लिए भ्रम की स्थिति से गुजरती रहेगी । हो सकता है तृणमूल कांग्रेस और डी एम के जैसी पार्टियों को ऐसे विवादास्पद बयान देकर अपने – अपने राज्यों में कुछ लाभ मिल जाय लेकिन किसी राष्ट्रीय पार्टी को हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं से खिलवाड़ करके कोई फायदा नहीं होने वाला । उल्टे भाजपा की सरकार और मजबूत होगी ।
कुछ और जरूरी पहलुओं पर भी विचार करना चाहिए । वैज्ञानिक पक्ष लें तो गाय एक मात्र ऐसा पशु है जिसका सब कुछ मनुष्य के काम आ जाता है । दूध और दूध से बनने वाली तमाम चीजें तो अपनी जगह हयी हैं । घरती पर यही अकेला प्राणी है जिसका मल-मूत्र तक हमारे काम आ जाता है । तमाम औषधियों में गोमूत्र का प्रयेाग किया जाता है । ‘‘ पंचगव्य ‘’ का निर्माण गाय के दूध, दही ,घी , मूत्र और गोबर से किया जाता है । गुजरात में बलसाड़ा नामक स्थान के निकट कैंसर का एक अस्पताल है । जिसका दावा है कि इसी पंचव्य से सैकड़ों कैंसर के रोगी अब तक ठीक होचुके । वैज्ञानिकों का यह भी दावा है कि गाय ही एक ऐसा प्राणी है जो सदैव आक्सीजन ही लेता है और आक्सीजन ही निकालता है । कानूनी पक्ष लें तो भी यों तो इस संदर्भ में अदालतों में कई मामले लंबित हैं ।लेकिन राजस्थान हाईकोर्ट नेे गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने की सिफारिश की है ।साथ ही अदालत ने गोहत्या करने वालों के लिए उम्रकैद की भी सिफारिश की है । यद्यपि यह अंतिम फैसला नहीं है। इसके अतिरिक्त आध्यात्मिक पक्ष पर गौर करें तो स्वामी दयानन्द सरस्वती ने कहा था कि एक गाय अपने जीवन काल में 4 लाख से अधिक लोगों के लिए एक दिन का भोजन जुटा सकती है जबकि यदि उसको मार कर खा लिया जाय तो 80 लोगो का भी पेट मुश्किल से भरेगा ।

—  डॉ डी एम मिश्र

*डॉ. डी एम मिश्र

उ0प्र0 के सुलतानपुर जनपद के एक छोटे से गाँव मरखापुर में एक मध्यम वर्गीय किसान परिवार में जन्म । शिक्षा -पीएच डी,ज्‍योतिषरत्‍न। गाजियाबाद के एक पोस्ट ग्रेजुएट कालेज में कुछ समय तक अघ्यापन । पुनश्च बैंक में सेवा और वरिष्ठ -प्रबंघक के पद से कार्यमुक्त । प्रकाशित साहित्य - देश की प्रतिष्ठित पत्र- पत्रिकाओं में 500 से अधिक गीत, ग़ज़ल, कविता व लेख प्रकाशित । साथ ही कविता की छः और गजल की पांच पुस्तकें प्रकाशित, ग़ज़ल एकादश का संपादन। गजल संग्रह '- आईना -दर-आईना ,वो पता ढूॅढे हमारा , लेकिन सवाल टेढ़ा है , काफ़ी चर्चित। पुरस्कार - सम्मान ----- जायसी पंचशती सम्मान अवधी अकादमी से 1995, दीपशिखा सम्मान 1996, रश्मिरथी सम्मान 2005, भारती-भूषण सम्मान 2007, भारत-भारती संस्थान का - लोक रत्न पुरस्कार 2011, प्रेमा देवी त्रिभुवन अग्रहरि मेमोरियल ट्रस्ट अमेठी प्रशस्ति -प़त्र 2015, उर्दू अदब का - फ़िराक़ गोरखुपरी एवार्ड 2017, यू पी प्रेस क्लब का -सृजन सम्मान 2017, शहीद वीर अब्दुल हमीद एसोसियेशन द्वारा सम्मान 2018, साहित्यिक संघ वाराणसी का सेवक साहित्यश्री सम्मान 2019 आदि । अन्य साहित्यिक उपलब्धियाँ राष्ट्रीय स्तर के कुछ प्रमुख संकलनों में भी मेरी रचनाओं ( गीत, ग़ज़ल, कविता, लेख आदि ) को स्थान मिला है । जैसे -- भष्टाचार के विरूद्ध, प्राची की ओर , दृष्टिकोण , शब्द प्रवाह , पंख तितलियों के, माँ की पुकार, बखेडापुर, वाणी- विनयांजलि , शामियाना , एक तू ही, आलोचना नही है यह, परम्परा के पडाव पर गाँव, अजमल: अदब, अदीब और आदमी, युगांत के कवि त्रिलोचन, कथाकार अब्दुल बिस्मिल्ला: मूल्यांकन के विविध आयाम, हिन्दी काव्य के विविध रंग, समकालीन हिन्दी गजलकार एक अध्ययन खण्ड तीन- हिंदी ग़ज़ल की परम्परा सं हरे राम समीप , हिंदी ग़ज़ल का आत्मसंघर्ष, सं सुशील कुमार, ग़ज़ल सप्तक सं राम निहाल गुंजन आदि संकलनों में शामिल । अन्य - आकाशवाणी, दूरदर्शन, आजतक, ईटीवी , न्यूज 18 इंडिया आदि चैनलों पर अनेक कार्यक्रम प्रसारित। अखिल भारतीय कवि-सम्मेलनों, मुशायरों व गोष्ठियों में सक्रिय सहभागिता। सम्पर्क -604 सिविल लाइन, निकट राणाप्रताप पी. जी. कालेज, सुलतानपुर एवं ए - 1427 /14, इंदिरानगर, लखनऊ । मोबाइल नं. 09415074318, 07985934703 ई मेल - [email protected], [email protected]