दिव्यांगों के आदर्श – श्री बच्चू सिंह (भाग 1)
बच्चू सिंह भरतपुर रियासत के राजकुमार थे। भरतपुर के महाराजा किशन सिंह के यहाँ 30 नवंबर 1922 को मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी व द्वादशी (गीता जयंती/मत्स्य द्वादशी) के दिन एक पुत्र उत्पन्न हुआ। उसका नाम किशन सिंह ने अपनी स्वर्गीय माता गिरराज कौर के नाम पर ‘गिर्राज शरण सिंह’ रखा। उनको ही प्यार से ‘बच्चू सिंह’ कहा जाता था।
बच्चू सिंह अपने जन्म से मस्तिष्क पक्षाघात (सीपी) और आत्मकेंद्रित स्पेक्ट्रम विकार (एएसडी) नामक असाध्य बीमारी से पीड़ित थे। मस्तिष्क पक्षाघात होने से सामान्य रोगी का जीवन निष्क्रिय हो जाता है, परन्तु उनके पिता महाराजा किशनसिंह और उनके वफादार समर्थकों द्वारा उनकी गहन आयुर्वेदिक चिकित्सा करायी गयी और क्षत्रियोचित प्रशिक्षण भी दिया गया, जिससे वे शारीरिक रूप से अपने आपको ढालने में समर्थ रहे।
उस समय राजपरिवारों के युवकों के लिए ब्रिटिश सरकार की सेना में शामिल होना सामान्य परम्परा थी। इसलिए ब्रिटिश प्रशासन ने भरतपुर के पूरे राजपरिवार को ‘क्षत्रिय’ नामक सैन्य शक्ति में शामिल करने के लिए मनाया। लेकिन बच्चूसिंह की विशेष शारीरिक अक्षमता के कारण उनको थलसेना में भेजना संभव नहीं था, परन्तु उनकी उपेक्षा करना भी असंभव था, इसलिए उन्हें वायुसेना में फ्लाइंग आॅफिसर (पायलट) के रूप में भेजा गया।
1943-44 में जब नेताजी सुभाष चन्द्र की आजाद हिन्द फौज द्वारा उत्तर-पूर्व भारत पर आक्रमण किया गया, तो उसकी प्रतिक्रिया में बच्चूसिंह को आजाद हिन्द फौज पर हमला करने के लिए निर्देश दिया गया। किन्तु इसमें बच्चू सिंह ने पूरी बेरुखी दिखायी, क्योंकि वे पूरे मन से देशभक्त थे और अपने ही देशभक्त देशवासियों पर आक्रमण करना उनको उचित नहीं लगा।
बच्चू सिंह की बेरुखी से नाराज होकर ब्रिटिश शासन ने बच्चू सिंह को चिढ़ाने के लिए उनके ही एक मित्र फ्लाइंग आॅफिसर राजेन्द्र सिंह को बच्चू सिंह के युद्ध विमान हरिकेन-2 से ही आजाद हिन्द फौज पर हमला करने के लिए भेजा। ब्रिटिश शासन समझता था कि बच्चू सिंह कुछ कर नहीं पाएगा और इस हमले पर भरतपुर के राजपरिवार का नाम आ जाने से आंदोलन खराब होगा। लेकिन नाराज बच्चू सिंह ने अपने विमान में खराबी कर दी जिससे हरिकेन-2 सिलचर और इंफाल के बीच दुर्घटनाग्रस्त हो गया। उसमें राजेन्द्र सिंह की मृत्यु हो गई।
बच्चू सिंह को इसका दोषी माना गया, लेकिन ब्रिटिश शासन युद्ध के दौरान एक प्रभावशाली रियासत के विरुद्ध कुछ कार्यवाही नहीं कर सकती थी, न ही इसके लिए दोष देकर आंदोलन का खतरा और बढ़ा सकती थी। बच्चू सिंह ने न खुद आजाद हिन्द सेना पर हमला किया, न अपने किसी साथी को करने दिया। ब्रिटिश सरकार हाथ मलती रह गई।
वास्तव में द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान बच्चू सिंह सर छोटूराम के अधीन आर्य समाज, अजगर और क्षत्रिय आंदोलन से जुड़ गए थे, जो पाकिस्तान की मांग, और जन्म आधारित आरक्षण के विरुद्ध था तथा सयुंक्त भारत और केवल जरूरतमंदों के संरक्षण के लिए प्रयासरत था।
— विजय कुमार सिंघल