जीवन तो है त्याग साधना
जीवन तो है त्याग साधना
जीवन भोग विलास नही है
वो मानव क्या मानव जिसको
पर दुख का अहसास नही है
जन सेवा ही सब धर्मो की
है केवल सच्ची परिभाषा
दुख नैराश्य नही है जीवन
है जन मंगल की अभिलाषा
सत्कर्मों का सूरज जिस दिन
अंतस में उदयमान होगा
दुश्कर्मों के अँधियारे का
फिर नही कहीं निशान होगा
अन्तर्मन में जिस दिन सबके
सदभाव समर्पण जागेगा
यह जाति पाँति का भेदभाव
खुद छोड धरा को भागेगा
हम कर्मयोग करने वाले
पुरखों के अनुयायी बनकर
नव पीढी तक संचार करें
सदगुण उत्तरदायी बनकर
जो परम्पराएं जीवन की
सदियों ने सौंपी है हमको
कुछ उन्नत और बनाकर हम
सौंपे आने वाले कल को
हम कर्णधार हैं नव युग के
नव पीढी में विश्वास भरें
मानवता की मर्यादा का
वो भी मन में आभास करें
सारी चिंताएं छोड छाड
आओं रम जाएं चिंतन में
स्वर्णिम नव युग होगा अपना
विश्वास यही पालें मन में
सतीश बंसल
०५.०६.२०१७