कविता

जीवन तो है त्याग साधना

जीवन तो है त्याग साधना
जीवन भोग विलास नही है
वो मानव क्या मानव जिसको
पर दुख का अहसास नही है
जन सेवा ही सब धर्मो की
है केवल सच्ची परिभाषा
दुख नैराश्य नही है जीवन
है जन मंगल की अभिलाषा

सत्कर्मों का सूरज जिस दिन
अंतस में उदयमान होगा
दुश्कर्मों के अँधियारे का
फिर नही कहीं निशान होगा
अन्तर्मन में जिस दिन सबके
सदभाव समर्पण जागेगा
यह जाति पाँति का भेदभाव
खुद छोड धरा को भागेगा

हम कर्मयोग करने वाले
पुरखों के अनुयायी बनकर
नव पीढी तक संचार करें
सदगुण उत्तरदायी बनकर
जो परम्पराएं जीवन की
सदियों ने सौंपी है हमको
कुछ उन्नत और बनाकर हम
सौंपे आने वाले कल को

हम कर्णधार हैं नव युग के
नव पीढी में विश्वास भरें
मानवता की मर्यादा का
वो भी मन में आभास करें
सारी चिंताएं छोड छाड
आओं रम जाएं चिंतन में
स्वर्णिम नव युग होगा अपना
विश्वास यही पालें मन में

सतीश बंसल
०५.०६.२०१७

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.