मुक्तक/दोहा

दोहे

पर्वत सागर झील वन, सागर नदी पठार।
लुटा रही हर रूप में, कुदरत अपना प्यार।।

जीवन का अाधार है, जल की बहती धार।
जल बिन जीवन कल्पना, मानव सोच विचार।।

रोक नदी की धार को, मत जन जीवन छीन।
नदियाँ रूधिर वाहिनी, तन है अगर ज़मीन।।

पेडों को काटो नही, करती धरा पुकार।
ये जंगल वन बाग हैं , धरती का श्रंगार।।

काट वृक्ष मत रोकिये, इस जीवन की राह।
वृक्षो बिन संभव नही, तन में प्राण प्रवाह।।

जीव जंतु सबके लिये, है कुदरत का प्यार।
मानव क्यूँ करने लगा, फिर सब पर अधिकार।।

पेडो के उपकार पर, मानव का कल आज।
भोजन दारू या दवा, सब देते वनराज।।

लालच में जो बंद हैं, मन की आँखे खोल।
बिन पेडो अपना यहाँ, तू अस्तित्व टटोल।।

बंसल करता है यही, विनती बारंबार।
पेडों को मत काटिये, ये जीवन का सार।।

सरीश बंसल
०२.०६.२०१७

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.