कविता

मन…..

ये मन भी न !
सुकून की साँस ही नहीं लेने देता
हर वक़्त कोई न कोई “ऐसी बात”
मन में चलता ही रहता

जो कभी चैन से जीने ही नहीं देता
इतना ही नहीं !
ये पूरा का पूरा शारीरिक व मानसिक
व्यवहार को भी प्रभावित करता हैं

बड़े परेशान-परेशान से रहते हम
फिर ऐसे में कोई अच्छी बात भी
भाती नहीं
हालत हो जाती है इतनी बुरी कि
कोई काम ढंग से होता ही नहीं

ऐसा लगता है !
जैसे खुद पर नियंत्रण ही नहीं
थक जाता है इंसान खुद से ही
लड़ते-लड़ते
फिरभी हार का ही मुँह देखना पड़ता

आखिर, ऐसा क्यों होता हैं ?
इंसान खुद के ही आगे इतना
मजबूर हो जाता

कोशिश तो बहुत होती हैं
निकले जाए ख्यालों के जकड़न से
पर हर कोशिश नाकाम
नजर आती हैं
और बढ़ता ही जाता मन का उलझन

फिर,एक सवाल लेता है जन्म
आखिर, शरीर के किस हिस्से में
बसते है हम
जहाँ चलती हो मर्जी अपनी
ये मन और दिल तो बस में नहीं

तो आखिर कहाँ खुद को ढूंढे हम ?

*बबली सिन्हा

गाज़ियाबाद (यूपी) मोबाइल- 9013965625, 9868103295 ईमेल- [email protected]