इंसानियत — एक धर्म ( भाग — सोलहवां )
अदालत कक्ष में फैला सन्नाटा और गहरा गया था । सबकी निगाहें सरकारी वकिल महाजन की तरफ लगी थीं और कान उनके जवाब की प्रतीक्षा कर रहे थे । अपनी जगह पर खड़ा होते हुए महाजन ने झुककर जज साहब का अभिवादन किया और कहना शुरू किया ” योर ओनर ! भारतीय कानून व्यवस्था के इस गौरवशाली इतिहास में आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ जब किसी हत्या के मुजरिम के लिए किसी वकिल द्वारा उसकी पहली ही पेशी में जमानत की अर्जी दी गयी हो । और जब यह अर्जी देनेवाला राजन पंडित जैसा काबिल वकिल हो तो फिर तो मुजरिम कितना रसूखदार है यह अपने आप साबित हो जाता है । और आप जानते हैं माय लॉर्ड ! एक रसूखदार मुजरिम न्याय को प्रभावित करने की कितनी क्षमता रखता है ? इसीलिए मेरी अदालत से गुजारिश है कि मुजरिम की जमानत अर्जी को खारिज करते हुए उसे रामपुर थाना पुलिस को तीन दिन की रिमांड पर सौंप दिया जाए जिससे इस घटना से संबंधित सभी साक्ष्य व तथ्यों की जानकारी मुजरिम से निकलवाई जा सके । धन्यवाद योर ओनर ! दैट्स आल ! ” अपनी दलील समाप्त कर महाजन चुप हो गए ।
अब बारी वकिल राजन पंडित की थी । अपनी जगह पर ही खड़े होते हुए झुक कर उन्होंने जज का अभिवादन किया और कहना शुरू किया ” योर ओनर ! मेरे फाजिल दोस्त श्रीमान महाजन जी ने बड़ी अच्छी दलील पेश की जमानत अर्जी खारिज करने की वजह गिनाते हुए । लेकिन क्या वह नहीं हो सकता जो पूर्व में कभी न हुआ हो ? क्या कानून इस बात को पसंद करेगा कि हम वही लकीर के फ़क़ीर बने रहें ? नहीं न ? हर समाज हर तबका नए नए विचार रखता है उसपर मनन करता है और फिर उसे उपयुक्त पाकर उसपर अमल भी करता है । मुल्जिम के समर्थन में मेरी जमानत अर्जी को भी इसी नजरिये से देखा जाना चाहिए । साथ ही हमें कानून के संदर्भ में संविधान द्वारा उध्दृत एक आदर्श वाक्य को कभी नहीं भूलना चाहिए और मैं नहीं समझता कि मेरे मित्र महाजन जी उस वाक्य से अनजान होंगे । लेकिन फिर भी मैं वह वाक्य दुहरा ही दूँ तो बेहतर होगा । और वह वाक्य है ‘ भले ही सौ अपराधी छूट जाएं लेकिन किसी एक भी निरपराध को सजा नहीं होनी चाहिए ‘ । योर ओनर ! मैं यह नहीं कहता कि सम्बंधित आदर्श वाक्य की आड़ लेकर सभी मुजरिमों को बेगुनाह मान लिया जाए । जमानत क्यों दिया जाए इसके लिए मेरे पास दलीलें हैं लेकिन मैं अपने मित्र से यह जानना चाहूंगा कि मुल्जिम को रिमांड पर क्यों दिया जाए ? “
पंडित जी के खामोश होते ही महाजन की दलील शुरू हो गयी ” मेरे फाजिल दोस्त जो कि स्वयं एक वरिष्ठ और नामी वकिल हैं उनसे ऐसे गैर अनुभवी दलीलों की उम्मीद नहीं थी । वकिल साहब शायद यह भूल गए हैं कि वह दलीलें गांव की पंचायत में नहीं बल्कि न्याय के मंदिर में रख रहे हैं जहां हर दलील के साथ ही उपलब्ध सबूतों की रोशनी में हर मुल्जिम और उसके जुर्म की जांच परख होती है और तब कहीं जाकर मुल्जिम को मुजरिम करार देते हुए सही न्याय हो पाता है । और इस मामले में तो आरोपी खुद ही अपने गुनाह की तस्दीक कर चुका है । मेरे वरिष्ठ मित्र नहीं जानते कि रिमांड क्यों मांगा जाता है ? फिर भी जब आपने पूछ ही लिया है तो बता दूं कि इस मुकदमे से संबंधित अहम कड़ियों को जोड़ने का काम और सबूतों और गवाहों की पहचान करने का काम अभी बाकी है इसलिए पुलिस को मुल्जिम के रिमांड की आवश्यकता है । दैट्स आल योर ओनर ! “
अब एक बार फिर राजन पंडित की बारी थी ” योर ओनर ! मेरे विद्वान मित्र को मेरी कही दलीलें बचकानी व गैर अनुभवी लगीं इसके लिए मैं क्या कह सकता हूँ । हां ! इतना जरूर कह सकता हूँ कि ‘ बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद ? ‘ ….’
उनके इतना कहते ही महाजन जी चीख पड़े ‘ ऑब्जेक्शन मि लॉर्ड ! मेरे वरिष्ठ सहयोगी अब अपनी सीमा लांघ रहे हैं । “
बड़े ही अनोखे अंदाज में चौंकने का शानदार अभिनय करते हुए पंडित जी ने मजाकिया लहजे में कहा ” सीमा लांघ रहा हूँ ? कहाँ महाजन जी ! मैं तो अपनी जगह पर ही खड़ा हूँ । यहां से हिला भी नहीं । ” पंडित जी के मजाकिया लहजे को देखकर कक्ष में लोगों की हंसी गूंज उठी । जज साहब लकड़ी की हथौड़ी मेज पर पटक कर शांति स्थापित करने का प्रयत्न करते हुए बोले ” ऑर्डर ! आर्डर ! “
और पंडित जी की तरफ देखते हुए बोले ” you may proceed now please . “
राजन पंडित ने एक बार फिर अपनी दलीलें शुरू की ” योर ओनर ! मैं अपने मित्र से यही जानना चाहता था कि वह क्या वजह है जिसके लिए मुल्जिम को पुलिस के रिमांड में देना आवश्यक है ? लेकिन मेरे फाजिल दोस्त यह बताने की बजाय नियमों और परंपराओं की दुहाई ही ज्यादा देते दिखे । इसके अलावा जो वजह उन्होंने बताई भी है वह अपर्याप्त व अदालत को गुमराह करनेवाले हैं । योर ओनर ! अगर इजाजत हो तो मैं इस मामले में विवेचना अधिकारी से कुछ सवाल करना चाहता हूं । “
जज साहब ने बिना एक पल की देर किए कह दिया ” इजाजत है । “
उनके इतना कहते ही दरोगा पांडेय जी तुरंत ही विटनेस बॉक्स की तरफ बढ़े । अपनी कैप उतारकर बगल में दबाए पांडेय जी गवाहों के लिए बने कटघरे में जा खड़े हुए । अपनी जगह से उठते हुए वकिल राजन पंडित गवाहों के कटघरे में खड़े पांडेय जी से मुखातिब हुए ” क्या आप ही आलम हत्याकांड के विवेचनाधिकारी हैं ? “
” जी ! ” पांडेय जी ने संक्षिप्त उत्तर दिया ।
पण्डित जी ने पांडेय जी की आंखों में झांकते हुए पूछा ” मृतक का शव मिला ? “
” जी “
” उसके शव की शिनाख्त हो गयी ? “
” जी “
” हत्या में प्रयुक्त हथियार बरामद हुआ ? “
” जी “
” मृतक की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट आ गयी ? “
” जी “
” क्या मुजरिम ने अपना गुनाह कबूल कर लिया है ? “
” मुजरिम ने इकबालिया बयान दिया है जो इस विवेचना का अहम हिस्सा है और हमारे पास दस्तावेजी सबूत हैं । “
” क्या आपको मुजरिम के अलावा और किसी पर कोई शक है ? “
” जी नहीं ! “
” क्या आपको किसी गवाह के मिलने की उम्मीद है या तलाश है ? “
” जी नहीं ! ये आप कैसे उल्टे सीधे सवाल कर रहे हैं वकिल साहब ? ये केस शीशे की तरह साफ है । ” झुंझलाते हुए पांडेय जी ने बेरुखी से जवाब दिया ।
लेकिन अगले ही पल पंडित जी जज साहब से मुखातिब होते हुए बोल रहे थे ” point to be noted sir . वास्तव में मैं भी वही कहना चाह रहा था जो अभी अभी दरोगा पांडेय जी ने कहा है । योर ओनर ! जैसा कि अभी अभी आपने सुना इस केस के विवेचना अधिकारी के अनुसार यह केस शीशे की तरह साफ है हत्या में प्रयुक्त हथियार की बरामदगी हो चुकी है ‘ किसी पर कोई शक नहीं है और इसीलिए मुल्जिम से कोई पूछताछ की आवश्यकता ही नहीं है तो फिर मुल्जिम को हिरासत में या रिमांड में रखने का क्या तुक है ? “