गीत “पीपल ही उद्गाता है”
देवालय का सजग सन्तरी,
हर-पल राग सुनाता है।
प्राणवायु को देने वाला ही,
पीपल कहलाता है।।
इसकी शीतल छाया में,
सारे प्राणी सुख पाते हैं,
कागा और कबूतर इस पर,
अपना नीड़ बनाते हैं,
देवालय में पीपल राजा,
देवों से बतियाता है।
प्राणवायु को देने वाला ही,
पीपल कहलाता है।।
सभी आस्थावान लोग,
जल इस पर रोज चढाते हैं,
बजरंगी हुनमान वीर को,
अपना शीश नवाते हैं,
देवालय के देवों का तो,
पीपल ही उद्गाता है।
प्राणवायु को देने वाला ही,
पीपल कहलाता है।।
पेड़ लगायें कहाँ आज हम,
आँगन तो अब नहीं रहे,
जंगल खाली हुए धरा से,
कैसे शीतल हवा बहे?
कंकरीट का जंगल अब तो,
सबको बहुत लुभाता है
प्राणवायु को देने वाला ही,
पीपल कहलाता है।।
—
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक)