गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

*1212 1212 1212 1212*
सितम की आरजू लिए है वक्त आजमा रहा ।
जो हो सका नहीं मेरा वो रास्ता बता रहा ।।

अजीब दास्ताँ है ये न् कह सका न लिख सका।
ये हाथ मिल गए मगर वो फासला बना रहा ।।

है हसरतों की क्या ख़ता उन्हें जो ये सजा मिली ।
मैं कातिलों का रात भर गुनाह देखता रहा ।।

बड़ी उदास शब दिखी न माहताब था कहीं ।
वो कहकशां सहर तलक हमें ही घूरता रहा ।।

जो सिलसिला चला नही उसी का जिक्र फिर सही ।
धुँआ उठा बहुत मगर न आग का पता रहा ।।

शजर शजर में गुफ्तगूं है बगवां को क्या खबर ।
बगावतों का दौर है वो कारवां चला रहा ।।

खुदा समझ सका न वो अलग हुईं इबादतें ।
है मजहबी दयार ये खुदा जुदा जुदा रहा ।।

नज़र को फेर हमनशीं गुजर गया करीब से ।।
बदल गए मिज़ाज सब वफ़ा का सर झुका रहा ।

हवा ने रुख बदल दिया तो आग भी सुलग गई ।
वतन का खैर ख्वाह ही वतन को अब जला रहा ।।

हजार घर उजड़ गए तमाम लाश जल गयीं ।
सियासतों के नाम पर वो मसअला खड़ा रहा ।।

नवीन मणि त्रिपाठी

*नवीन मणि त्रिपाठी

नवीन मणि त्रिपाठी जी वन / 28 अर्मापुर इस्टेट कानपुर पिन 208009 दूरभाष 9839626686 8858111788 फेस बुक naveentripathi35@gmail.com