बाल मजदूर
कल सिनेमाघर में एक फिल्म देखी !!
नाम था “बैंक चोर”
फिल्म के शुरुआत में ही एक ऐसा दृश्य देखने को मिला जिससे कि मन चिंतित हो उठा।
पता लग गया कि इस प्रकार की फिल्मों को प्रमाणपत्र देने वाले देश मैं चलने वाली बाल मजदूरी के प्रति कितने जागरुक हैं।
हाल के अंदर वैसे भी बहुत सारे निष्ठुर युवा बैठे हुए थे, जोकि हमारा राष्ट्रीय गान की धुन बजने पर भी देश के प्रति 50 सेकेंड के लिए खड़े नहीं हो सके ।
फिर फिल्म के शुरुआत में ही 5 से 8 साल का बच्चा जिसको हम आमतौर पर ढाबे ,चाय वाले के पास देखते हैं, और उसको “छोटू “के नाम से जानते हैं ।
अरे हां !!वही छोटू!
बैंक के अंदर कर्मचारियों को चाय बांट रहा था, दरवाजे पर बैठे चौकीदार से लेकर ,बैंक के मैनेजर तक के मुंह पर “छोटू” के बारे में अलग-अलग शिकायतें थी,कि छोटू खाना अच्छा नहीं था ,चाय ठंडी थी वगैरा-वगैरा।
वह छोटू पूरे बैंक में घूमता है ,उसी छ: कपों को अपने हाथों में लिए फिर रहा है।
क्या ऐसी दृश्य दिखाना बाल मजदूरी को बढ़ावा दे रहा है!!?
हमें इन फिल्मों के बारे में सोचना चाहिए कि वह क्या दिखा रहे हैं ।
जैसे की अब जानवरों को दिखाने में प्रतिबंध है तो बाल मजदूरी को दिखाने पर भी प्रतिबंध होना चाहिए।