कविता

भूल तो पड़ जाती तुम्हारी लेकिन

भूल तो पड़ जाती तुम्हारी लेकिन
पार्कर का पेन जो तुमने दिया था उससे
मैं हर रोज लिखता हूं , तो तुम्हारी याद लाज़मी है
भूल तो पड़ जाती तुम्हारी लेकिन
जो गुलाब का फूल तुमने पहली दफा
दिया था जाने अनजाने में वो किताब में
रखा हुआ मेरे सामने आ ही जाता है
भूल तो पड़ जाती तुम्हारी लेकिन
खूंटी पर टंगा तुम्हारा दुपट्टा आज भी
मेरे पास है जो
जल्दी के मारे तुम भूल गई थी
मैं हर रोज सुबह छू लेता हूं उसे
भूल तो पड़ जाती तुम्हारी लेकिन
जो ख़त तुमने लिखे थे मेरे लिए
वो बारिश की सीलन से गीले हो गए हैं
कई दफा सुखा चुका हूं उनको ,
वो आज भी मेरे पास है मेरी मेज
पर रखे हुए अलग से
भूल तो पड़ जाती तुम्हारी लेकिन
तुमने जो हाथ से बनाया हुआ स्वेटर
गिफ्ट किया था मुझे
मैं कई बार कमरे में गर्मी में भी पहन लेता हूं
भूल तो पड़ जाती तुम्हारी लेकिन
सच कहूं!!
” मैं भूलना नहीं चाहता तुम्हें”

प्रवीण माटी

नाम -प्रवीण माटी गाँव- नौरंगाबाद डाकघर-बामला,भिवानी 127021 हरियाणा मकान नं-100 9873845733