गजल
लौट आओ कि शाम ढल न जाये
वक्त है मुकम्मल बदल न जाये
काटी है राते हमने करवट बदल कर
इन्तजार मे तेरे दम निकल न जाये
भूल पाना मुमकिन नही अब तुमको
टूटकर कही ये दिल बिखर न जाये
वक्त बहुत बेरहम है दिलदार मेरे
कैद कर लो कही फिसल न जाये
बाद मुद्दत के आयी घड़िया नसीब से
सदिया बातो-बातो मे गुजर न जाये
आंखे बरसती रहेंगी तुम्हारे इन्तजार में
भावुक मन मेरा कही मचल न जाये
— प्रीती श्रीवास्तव