ए मेरे मौला! कुछ ऐसे तेरी रहमतों की हम पर बरसात कर,
कोई ना रहे रोटी, कपड़े और मकान बिना ऐसी करामात कर।
नफरतों का साया ना हो दिल ओ दिमाग पर तेरी दुनिया में,
समझे इंसान को इंसान दुनिया वाले, ऐसी सबकी औकात कर।
माँ बाप का साया सिर पर रहे, मिलता सबको उनका प्यार रहे,
खुशियों से भरा हो बचपन सभी का, ए मौला कुछ ऐसी बात कर।
चाहत ही चाहत हो चारों तरफ, इंसानियत ही इकलौता धर्म हो,
खुशियों से महके हर घर आँगन, बस इतनी सी सौगात कर।
सुलक्षणा कर रही अरदास तुझसे, ए मौला! मत उसे निराश कर,
जीवन सफल हो जाएगा उसका, बस उससे एक मुलाकात कर।
©® डॉ सुलक्षणा