गीतिका/ग़ज़ल

“गजल”

चहलकदमी के नपे पैर तो देखो

सुबहो शाम दस्तकी शैर तो देखो

गिनते हैं रिश्ते कई पीढ़ियों तक

मतलब की दुनिया के खैर तो देखो॥

भरे आए थे खाली होकर चल दिए

अपने सरीखे मिले गैर तो देखो॥

मन में रखते हैं सजाए नूर नजर

वक्त आने पर उपजे कैर तो देखो॥

जानकर पलकों को गिराएँ उठाएँ

मुहब्बत बड़ी दूर की बैर तो देखो॥

हया न शर्म न लाज भीगते पानी

सहूर के सरोवर भरे तैर तो देखो॥

गौतम मधुशाला समाई है अंदर

साकी के नैन नक्श जैर तो देखो॥

महातम मिश्रा, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ