विरहण हिया अंगार
पानी- पानी हो गयी, विरहण हिया अंगार ।
बसुरी मोहन की बजी. कविता का शृंगार ।
चार चाँदनी चाँद लखि चतुर चकोर विहार ।
गज़मुक्ता मणि ओज द्वय नाग नाग मन प्यार ।
मुंबई मे वर्षा हुई भीगा नैनीताल ।
विरहण दिल स्वाहा कहे , खट्टे लगे रसाल।
नही चाँदनी जिसको रोशन किया ,
माँ के चरणों मे रोशन हुआ लाल है।
बड़ी कातिल हसीना है नहीं तलवार रखती है ।
करे टुकड़े हज़ारों दिल तभी एतवार करती है ।
हलाहल से भयानक हो उसे मकरंद घृत कहते ।
नहीं तुक ताल हो जिसमे, उसे हम छ्न्द मृत कहते।