आह्वान अर्जुन का
नाद पंचजन्य की रणभेरी आज फिर आई है,
कुरुक्षेत्र के रण से युद्ध पताका लहराई है..
सम्मुख फिर वही आज खड़े दोनों भाई हैं,
उठा, उठा अर्जुन गांडीव अपना,करने आलिंगन रणदेवी आई है..
मत सोच कि सम्मुख तेरे सगे संबधी या भाई हैं,
ये कुरुक्षेत्र है यहाँ न तेरा कोई अपना न भाई है..
मना उत्सव वसंत रक्त शत्रु के रक्त से,
धर्मयुद्ध के इस उत्सव में सजा थाल मृत्यु देवी आई है..
उठा अर्जुन गांडीव अपना, करने आलिंगन रणदेवी आई है..
हे सहस्त्र गज सम बलशाली भीम सुनो,
करी प्रतिज्ञा तुमने वो घड़ी स्मरण करो..
चीर छाती अधर्मी की बन काली तुम रक्तपान करो,
उखाड़ भुजा अधर्मी की ‘हे वीर पूरी अपनी प्रतिज्ञा करो’..
इस महासमर की बलिवेदी पर शीश काट – काट लाएँगे,
रक्षा में माँ भारती हिमगिरी से सिन्धु तक रक्त अपना बहाएँगे..
कह देना आकाश से,
इस सावन बादलों से लहू शत्रु का बहाएँगे..
जो युद्ध हुआ अबके तो याद रखना,
विश्व पटल के नक़्शे से नाम तेरा मिटाएँगे..
उठा अर्जुन गांडीव अपना, करने आलिंगन रणदेवी आई है..
उठा अर्जुन गांडीव अपना, करने आलिंगन रणदेवी आई है..
रवि – किशोर
३ जुलाई, २०१७
शाम ५.३०