ग़ज़ल
आतंक शक्ति का, कोई भी इम्तिहाँ नहीं
मक्कार शत्रु है छली, इसमें गुमाँ नहीं |
ज़ख़्मी हुआ जिगर भी’, मगर खूंचकाँ नहीं
है ज़ख्म से अचेत, मगर नीमजाँ नहीं |
वह भारत अंग है सदा’, भारत गुरूर है
कश्मीर है हमारा’ कलह दरमियाँ नहीं |
उनको पसंद क्रूरता’ हम से है’ दुश्मनी
मतलब से’ करते’ बात, मगर मेहरर्बां नहीं |
आतंकी’ हूब कह्र चला बार बार है
तूफ़ान गुज़रा’ है यहाँ’ उसका निशाँ नहीं |
आगोश में न थे न सही, बदनाम तो हुआ
गर बोलते इशारे’ से’ खुलता दहाँ नहीं |
पंजाब से असाम, बिहार और केरला
इस देश के निवासी’ है’ पर हमजबाँ नहीं |
सरकारी’ लाभ के लिए’, बनते किसान है
हर दिन हवाई’ सैर करे, देहकाँ नहीं |
शब्दार्थ : गुमाँ= भ्रम , खूंचकाँ=रक्तरंजित
नीमजाँ=अधमरा , हूब =हत्या, देहकाँ= किसान
दहाँ= मुहँ
कालीपद ‘प्रसाद’