कहानी

बनारस वाली बुआ

मै दंसवी की परीक्षा दे चूका था मेरे पिता जी का ट्रांसफर बनारस हो गया, हमलोग बनारस आ गए| मेरे पड़ोस में सुभदा का परिवार रहता था हम दोनों के दरवाजे आमने सामने थे| दोनों दरवाजो के बीच में एक नीम के पेड़ का चौतरा था जंहा सुभदा अक्सर बैठ कर कुछ न कुछ पढ़ा करती थी| मेरी यंहा किसी से जान पहचान थी नहीं, मै अनमयस्क भाव से इधर उधर घूमकर दरवाजे पर कुर्सी लगाकर बैठ जाया करता था| एक दिन मै बड़े संकोच भाव से चबूतरे पर बैठ गया, सुभदा उस समय वंहा कुछ पढ़ रही थी| वह पढ़ते पढ़ते ही पूछी की कहा से आये हो ?
आगरा से मैंने संक्षिप्त उत्तर दिया
चलो वह प्यार की नगरी थी यह आध्यात्म की नगरी है, सुभदा हँसते हुए बोली
सुभदा – मन लग रहा है, कुछ दोस्त बनाए ?
मै – अभी तक तो नहीं, वैसे भी अब लोग फेसबुक ट्वीटर पर दोस्त बनते है|
सुभदा खिलखिलाकर जोर से हंस पड़ी, बोली की मेरा नाम सुभदा है मै समाज शास्त्र से एम् ए कर चुकी हु अब समाजशास्त्र से पी यच डी करने का इरादा है| तुम्हे कोई शैक्षिक मदद चाहिए तो मै दे सकती हु|
मै – लेकिन मै तो विज्ञान का बिद्यार्थी हु बड़े अवहेलित भाव से कहा, क्योकि मेरी हमेशा से यह धारणा रही है की यह सब पढ़ाई कमजोर बुद्धि वाले या कालेज में हुड़दंग करने के लिए करते है|
सुभदा – मैंने बी यस सी किया है लेकिन यम ए समाजशास्त्र से किया क्योकि मुझे लगा की आज देश को इंजिनियर डाक्टर से ज्यादे समाजशास्त्री की जरुरत है जो समाज में पनप रही विकृतियों और उसके कारण को रेखान्तित करे|
मै – लेकिन इसका कोई भविष्य नहीं है, आप तो आई ए यस का भी परीक्षा दे सकती थी|
सुभदा – जब समाज ही बिकृत हो रहा है तो भविष्य तो किसी का नहीं है और अगर पैसा कमाना ही उद्देश्य हो तो आई ए यश होना जरुरी नहीं है|
मुझे सुभदा की बाते और उसकी सादगी अन्दर तक झकझोर रही थी और अब रोज कुछ समय के लिए सुभदा के पास बैठना मेरा दिनचर्या बनता जा रहा था| उसके बोलचाल और सरलता में अजीब आकर्षण था| उसकी सादगी, उसकी सरलता, अपनापन मेरे मन में उसके प्रति एक अजीब श्रद्धा जागृत कर रही थी| एक दिन मैंने यु ही कहा की बुआ आपको राजनीत शास्त्र पर पी यच डी करना चाहिए| शायद मेरे बुआ के संबोधन से कुछ अपनापन और बढ़ गया था| बड़े सहज भाव से बोली की राजनीती अब अनुसंधान करने लायक रह ही नहीं गई है लल्ला ! धोखा मक्कारी बेईमानी राजनीती के प्रमुख अंग बन गए है| राजनीती पूरी तौर पर दिशाहीन हो गई है और जब जिसकी कोई दिशा ही न हो तो उस पर अनुसंधान कैसे किया जा सकता है|
सुभदा का दाखिला पी यच डी में हो चूका था, एक टेम्पो वाला जो वर्षो से उसे रोज कालेज में ले आता ले जाता था वाही अब भी उसे कालेज लाता जाता था| चूँकि सुभदा अब शादी योग्य हो गई थी, इस बात को लेकर माँ बाप में रोज तक झक होती थी, यद्यपि पिता जी कई जगह बात चलाये थे लेकिन कुछ सांवली होने के कारण बात बन नहीं रही थी| सुभदा सब जानकार भी बेपरवाह रहती थी लेकिन एक दिन माँ बाप में बड़े जोर की झड़प हो रही थी ठीक उसी समय कमरे में सुभदा पहुंची और बड़े सहज भाव से बोली की पिताजी शादी को जीवन का शर्त क्यों बना रहे हो|

पिता उसके सहज सरल बात का गलत अर्थ निकाल लिए और बोले की अगर तुम्हारे मन में कोई है तो मुझे बताती क्यों नहीं ! सुभदा हतप्रभ हो गई और बिना कुछ बोले दुसरे कमरे में चली गई| इस घटना के बाद सुभदा कुछ गम सुम रहने लगी| मुझे उसका यह रूप बहुत अखरने लगा| एक दिन मैंने हिम्मत करके पुचा की बुआ आज कल आप बहुत गंभीर हो गई हो| बोली कुछ नहीं रे लल्ला, इस समाज से मुझे घृणा हो रही है| पिता जी जिस समाज का मुझे अंग बनाना चाहते है वह मुझे स्वीकार नहीं रहा है और जो मुझे स्वीकार रहा है उसे पिता जी नहीं स्वीकार सकते| इस पुरे प्रकरण में तो मै कही हु ही नहीं| तभी टेम्पो वाला आ गया और बुआ उसमे बैठकर चली गई|
पहली बार बुआ टेम्पो वाले से पूछी की कितना पढ़े लिखे हो ?
टेम्पो वाला -अभी तक आपको मेरे डिग्री का पता नहीं चला|
बुआ -पहेलियाँ मत बुझाओ|
टेम्पो वाला – कागजी डिग्री तो मेरी यम काम की है|
बुआ – कही ट्राई नहीं किया|
टेम्पो वाला – ट्राई भी किया और नौकरी भी किया|
बुआ – फिर छोड़ क्यों दिया ?
टेम्पो वाला – नौकरी में मेरे जैसे लोगो की जरुरत नहीं है|
बुआ -इसमें तो और उद्दंड लोग मिलते है|
हां ! लेकिन एकाक सज्जन जरुर मिल जाते है जो दिनभर का अवसाद मिटा देते है, वहा तो एक ही किसिम के लोग हमेशा मिलते है|
बुआ – घर के लोग क्या करते है|
टेम्पो वाला – मेरा नाम ब्रम्ह शंकर है, मेरे पिता प्रोफ़ेसर और दोनों भाई डाक्टर है, नौकरी लगने के बाद मेरा मोल भाव शुरू हो गया था| मैंने घर और नौकरी दोनों छोड़ दी|
बुआ – कोई लड़की पसंद किये|
ब्रम्ह – इस चक्कर में तो कभी नहीं रहा और मेरा स्टेटस भी वैसा नहीं है, फिर भी एक के प्रति कुछ चाह पैदा हुआ है|
घर आकर सुभदा माँ के पास बैठ गई| माँ बड़े प्यार से बोली की बेटी अगर तुम्हारे मन में कोई है तो मुझे दिखाओ|
सुभदा – मन में कोई नहीं है माँ, बस एक से जान पहचान है लेकिन आप लोग जो पसंद करेंगे वाही मेरी पसंद होगा
माँ- उससे कब मिलाओगी, उसका परिवार कैसा है, कितना पढ़ा लिखा है और क्या करता है ?
सुभदा – कल उससे मिलकर सब जान लेना|
दुसरे दिन सुभदा जब कालेज जाने लगी तो माँ बोली बेटी जल्दी आना मुझे उस लड़के से मिलाना|

यही लड़का है माँ सुभदा बोली| माँ सन्न हो गई बोली यह तुम क्या कह रही हो
मेरा कोई फैसला नहीं है माँ, आप खुद मिलकर यह कौन है, इसका परिवार कैसा है, यह कितना पढ़ा लिखा है फैसला करना|
ब्रम्ह से मिलने के बाद सुभदा के माँ बाप का विचार बिलकुल बदल चूका था और वे ब्रम्ह को अपना दामाद बनाने के लिए मन से तैयार हो गए| लेकिन देव को कुछ और ही मंजूर था लगन से १० दिन पहले एक दुर्घटना में ब्रम्ह का देहांत हो गया|
इस घटना से सुभदा का पूरा परिवार हिल गया|लेकिन सुभदा बिना किसी हर्ष विषाद के अपना कर्तब्य करती रही| कुछ दिनों बाद कालेज में उसे प्रोफेसरी मिल गई और वह निर्मिमेष भाव से कर्म का निर्विवाहन करने लगी| वह माँ बाप का घर छोड़कर ब्रम्ह के ही छोटे से कमरे में रहने लगी,| वह तो पहले बड़े सादगी से रहती थी अब और सादगी से रहने लगी| इस दौरान मै आई यस अधिकारी बन चूका था और मेरी पोस्टिंग आसाम में हो गई थी लेकिन मै सुभदा का हर खबर रखता था| मेरा मन न नौकरी में लग रहा था और न आसाम में ! मै बनारस चला आया और ढूढ़ कर सुभदा के कमरे पर पहुँच गया| सुभदा बड़े स्निग्ध भाव से बोली की लल्ला अब तो तुम आई ए यस अफसर हो गए हो अब शादी कर लो|
किसलिए बुआ मै बोला
अरे तुम्हारी पूरी जिन्दगी पड़ी है, कोई खाना वाना बनाने वाला चाहिए न !
आप हो न बुआ, मै स्तीफा देकर आया हु|
लोग क्या कहेंगे ?
लोग जो पहले कहते थे वाही आज भी कहेंगे
बुआ निर्विकार भाव से बोली की जो समझो, बुआ को जानना बहुत आसान था लेकिन समझना बहुत मुश्किल|/

राजेन्द्र प्रसाद पाण्डेय

रिटायर्ड उत्तर प्रदेश परिवहन निगम वाराणसी शिक्षा इंटरमीडिएट यू पी बोर्ड मोबाइल न. 9936759104