नहीं भूलता है वो गुजरा जमाना
नहीं भूलता है वो गुजरा जमाना
कागज की कश्ती पे छतरी लगाना,
गिरने लगे जब भी बारिश की बूँदें,
हथेली लगाकर वो खुदको भिगाना।
चमकने लगी जबभी बिजली गगन में
छतरी गिराकर मेरा भाग जाना
बारिश की छमछम मे घूमा किये हम
बाबा का गुस्से से आँखे दिखाना
रोना मेरा वो बहाने बनाकर
अम्मा का बेटा फिर कहकर मनाना
नहीं भूलता है वो गुजरा जमाना
कागज की कश्ती पे छतरी लगाना,
सौरभ दीक्षित “पिडिट्स”