कविता

प्यार…

सुनो !
पलभर के लिए भी
तुम्हारी यादें
मेरा पीछा नहीं छोड़ती
जैसे !
लिपट गई हो साए की तरह
मेरे दिलो दिमाग से

बड़ी नादानी कर बैठी
तुमसे दिल लगाके
एक तरफा मुहब्बत !
सजाए मौत से भी बदत्तर

जहाँ सबकुछ लुटाकर भी !
जीना पड़ता है तन्हा
नाउम्मीदी में

भूल हो गई जो तुम्हें
समझ न सकी मैं !
तुम प्यार नहीं
आकर्षण में जीने वाले हो

खैर ! तुम कभी
समझ ही नहीं सकते प्यार को

क्योंकि तुम्हारे भीतर
प्यार नाम की कोई चीज ही नहीं।

*बबली सिन्हा

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