भाषा-साहित्य

दोहा छ्न्द के प्रकार – गुरु लघु विशेष

दोहा

विषम चरण में ४+४+३+२ या ३+३+३+२+३ =१३

सम चरण =३+३+२+३ या ४+४+३=११
विषम चरणान्त लघु दीर्घ [१,२] सम चरण तुकांत चरणान्त [दीर्घ , लघु [२+१] आवश्यक है कुछ अपवादों को छोड़कर -दोहा छ्न्द अनादि सागर है जिसका कोई अंत नहीं , छ्न्द अधिष्ठाता शेष हैं छ्न्द के जनक पिंगल नें दोहा को २३ श्रेणियों में उनकी संख्या लघु दीर्घ के आधार पर विभाजित किया है यहाँ हम दोहा के स्वरूप का संक्षिप्त विवेचना कल यति ,गति , गेयता , काव्य सौंदर्य के आधार परिभाषित करने का प्रयास किया हूँ । जिस प्रकार नाप के अनुसार पहने वसन तन की सौंदर्यता को शृंगारित कर देते है । उसी प्रकार छ्न्द में रचित रचना मनहर सर्वप्रिय लगने लगती है । गेयता में छ्न्द के प्राण निहित होते हैं । आप रचना एक बार गुनगुना कर देख लें । आपको आपकी रचना के यथार्त तत्काल बोध हो जाएगा

चार चरण दो पंक्ति में , भरा काव्य का सार ।
कबिरा तुलसी जायसी , छन्द किया विस्तार ।
चार चार औ तीन दो , त्रिपल [त्रिकल] तीन दो तीन ।
विषम चरण चरण तेरह लिखें, कल महिमा जल मीन । ।
ग्यारह मात्रा सम चरण , चौकल चौकल तीन ।
तीन तीन दो तीन लिख , मोहन गोपी लीन ।

बल दोहा [११ गुरु +२६ लघु वर्ण==४८]

कर करनी कर जानिए, कर सुधार संसार ।
कर बिन जीवन जग वृथा, कर करता विस्तार

त्रिकल दोहा [९ वर्ण दीर्घ [गुरु] ३० लघु वर्ण
बाइस गुरु लघु शेष लिख, दोहा भ्रमर सुजान।

इक्कीस गुरु विशेष लघु, कहत सुभ्रमर महान ।

पयोधर दोहा [१२ गुरु+२४ लघु=४८]
शरभ बीस गुरु आठ लघु, उन्नीस श्येन गुरु मान।
अड़तालिस में बाँट कर, मन लघु दीजै स्थान ।

हंस दोहा -14 गुरु वर्ण +२० लघु= ४८
मण्डूक अट्ठारह लिखें, मर्कट सत्रह ज्ञान
दीर्घ वर्ण वर्णन करूँ, सोलह करभ विधान

पान दोहा [10 गुरु वर्ण + 28 लघु वर्ण =४८ मात्रा]
नर पंद्रह गुरु वर्ण लिख, चौदह गुरु में हंस
तेरह गुरु गयंद वृहद, शेष छ्न्द लघु अंश

पयोधर गुरु वर्ण रचत, जस ग्यारह धन एक
ग्यारह गुरु ‘बल’ साधना, दस गुरु ‘पान’ अनेक

नौ से छ्न्द त्रिकल रचि, अष्टम कच्छप छ्न्द।
लघु की गणना कवि करें, लगे मधुर जस कन्द।

सात मच्छ , शार्दूल छह, अहिवर गुरु लिख पाँच
व्याल चार चालीस लघु, गुरुता अनुपम आँच

तीन विडाल गुरु लघु रचि पिंगल ज्ञानी शेष
दो गुरु श्वान विशेष लघु, शारद छ्न्द विशेष

उदर एक गुरु साधिये, छ्न्द गेयता ध्यान ।
सर्प शुन्य महिमा अमित, लघुता यहाँ प्रधान।

राज किशोर मिश्र ‘राज’ प्रतापगढ़ी

राज किशोर मिश्र 'राज'

संक्षिप्त परिचय मै राजकिशोर मिश्र 'राज' प्रतापगढ़ी कवि , लेखक , साहित्यकार हूँ । लेखन मेरा शौक - शब्द -शब्द की मणिका पिरो का बनाता हूँ छंद, यति गति अलंकारित भावों से उदभित रसना का माधुर्य भाव ही मेरा परिचय है १९९६ में राजनीति शास्त्र से परास्नातक डा . राममनोहर लोहिया विश्वविद्यालय से राजनैतिक विचारको के विचारों गहन अध्ययन व्याकरण और छ्न्द विधाओं को समझने /जानने का दौर रहा । प्रतापगढ़ उत्तरप्रदेश मेरी शिक्षा स्थली रही ,अपने अंतर्मन भावों को सहज छ्न्द मणिका में पिरों कर साकार रूप प्रदान करते हुए कवि धर्म का निर्वहन करता हूँ । संदेशपद सामयिक परिदृश्य मेरी लेखनी के ओज एवम् प्रेरणा स्रोत हैं । वार्णिक , मात्रिक, छ्न्दमुक्त रचनाओं के साथ -साथ गद्य विधा में उपन्यास , एकांकी , कहानी सतत लिखता रहता हूँ । प्रकाशित साझा संकलन - युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच का उत्कर्ष संग्रह २०१५ , अब तो २०१६, रजनीगंधा , विहग प्रीति के , आदि यत्र तत्र पत्र पत्रिकाओं में निरंतर रचनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं सम्मान --- युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच से साहित्य गौरव सम्मान , सशक्त लेखनी सम्मान , साहित्य सरोज सारस्वत सम्मान आदि