गीत “बादल ने नभ में ली अँगड़ाई”
सावन आते ही बादल ने,
नभ में ली अँगड़ाई।
आसमान में श्याम घटाएँ,
उमड़-घुमड़ कर आई।।
भीग रहे हैं खेत-बाग-वन,
गीले हैं चौबारे।
धरती का संताप मिटा,
जब रिमझिम पड़ीं फुहारे।
बच्चों ने काग़ज़ की नौका,
आँगन में तैराई।
आसमान में श्याम घटाएँ,
उमड़-घुमड़ कर आई।।
टर्र-टर्र मेंढक चिल्लाते,
कोयल गाती गाने।
कृषक और मज़दूर चले,
खेतों में धान लगाने।
चौमासे मे ही होती है,
धानों की रोपाई।
आसमान में श्याम घटाएँ,
उमड़-घुमड़ कर आई।।
मचल रहे हैं ताल-तलैया,
उफन रहीं सरिताएँ।
सुख़नवरों के उर-मन्दिर में,
सरस रहीं कविताएँ।
काँवड़ियों की टोली भी,
हर की पौड़ी पर आयी।
आसमान में श्याम घटाएँ,
उमड़-घुमड़ कर आई।।
मौसम का मिज़ाज़ बदला है,
बारिश पर यौवल छाया है।
कंगाली में आटा गीला,
कुटिया में पानी आया है।
जो उपवन वीरान पड़े थे,
उनमें भी हरियाली छाई।
आसमान में श्याम घटाएँ,
उमड़-घुमड़ कर आई।।
—
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)