गीत/नवगीत

गीत “बादल ने नभ में ली अँगड़ाई”

सावन आते ही बादल ने,
नभ में ली अँगड़ाई।
आसमान में श्याम घटाएँ,
उमड़-घुमड़ कर आई।।

भीग रहे हैं खेत-बाग-वन,
गीले हैं चौबारे।
धरती का संताप मिटा,
जब रिमझिम पड़ीं फुहारे।
बच्चों ने काग़ज़ की नौका,
आँगन में तैराई।
आसमान में श्याम घटाएँ,
उमड़-घुमड़ कर आई।।

टर्र-टर्र मेंढक चिल्लाते,
कोयल गाती गाने।
कृषक और मज़दूर चले,
खेतों में धान लगाने।
चौमासे मे ही होती है,
धानों की रोपाई।
आसमान में श्याम घटाएँ,
उमड़-घुमड़ कर आई।।

मचल रहे हैं ताल-तलैया,
उफन रहीं सरिताएँ।
सुख़नवरों के उर-मन्दिर में,
सरस रहीं कविताएँ।
काँवड़ियों की टोली भी,
हर की पौड़ी पर आयी।
आसमान में श्याम घटाएँ,
उमड़-घुमड़ कर आई।।

मौसम का मिज़ाज़ बदला है,
बारिश पर यौवल छाया है।
कंगाली में आटा गीला,
कुटिया में पानी आया है।
जो उपवन वीरान पड़े थे,
उनमें भी हरियाली छाई।
आसमान में श्याम घटाएँ,
उमड़-घुमड़ कर आई।।

(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

*डॉ. रूपचन्द शास्त्री 'मयंक'

एम.ए.(हिन्दी-संस्कृत)। सदस्य - अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग,उत्तराखंड सरकार, सन् 2005 से 2008 तक। सन् 1996 से 2004 तक लगातार उच्चारण पत्रिका का सम्पादन। 2011 में "सुख का सूरज", "धरा के रंग", "हँसता गाता बचपन" और "नन्हें सुमन" के नाम से मेरी चार पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। "सम्मान" पाने का तो सौभाग्य ही नहीं मिला। क्योंकि अब तक दूसरों को ही सम्मानित करने में संलग्न हूँ। सम्प्रति इस वर्ष मुझे हिन्दी साहित्य निकेतन परिकल्पना के द्वारा 2010 के श्रेष्ठ उत्सवी गीतकार के रूप में हिन्दी दिवस नई दिल्ली में उत्तराखण्ड के माननीय मुख्यमन्त्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा सम्मानित किया गया है▬ सम्प्रति-अप्रैल 2016 में मेरी दोहावली की दो पुस्तकें "खिली रूप की धूप" और "कदम-कदम पर घास" भी प्रकाशित हुई हैं। -- मेरे बारे में अधिक जानकारी इस लिंक पर भी उपलब्ध है- http://taau.taau.in/2009/06/blog-post_04.html प्रति वर्ष 4 फरवरी को मेरा जन्म-दिन आता है