गीतिका/ग़ज़ल

ये नहीं सच कि मुझे उससे मुहब्बत कम थी

ये नहीं सच कि मुझे उससे मुहब्बत कम थी
उसकी नज़रों में वफ़ाओं की ही क़ीमत कम थी

टूटकर बाग़ में बिखरे थे वही गुल केवल
जिनमें तूफ़ान से लड़ पाने की ताक़त कम थी

मेरे मौला तेरी नाराज़गी को क्या समझूँ
बेअसर मेरी दुआ थी कि इबादत कम थी

थोड़े आंसू थे, शिकायत भी थी, और थी फुरसत
ज़ीस्त में सिर्फ़ तुम्हारे बिना ज़ीनत कम थी

बारहा हाथ मेरे आई तभी नाकामी
थोड़ी मेहनत कम थी थोड़ी शिद्दत कम थी

तुम भी वादों से मुकरने की अदा रखने लगे
यूँ सताने के लिए क्या ये सियासत कम थी

इस ज़माने में वही लोग सुखी हैं ‘माही’
आज भी कल की तरह जिनकी ज़रूरत कम थी

— माही
14 जुलाई, 2017

महेश कुमार कुलदीप

स्नातकोत्तर शिक्षक-हिन्दी केन्द्रीय विद्यालय क्रमांक-3, ओ.एन.जी.सी., सूरत (गुजरात)-394518 निवासी-- अमरसर, जिला-जयपुर, राजस्थान-303601 फोन नंबर-8511037804