आया सावन
ठंडी – ठंडी सी पुरवाई।
हौले – हौले से बहती है।।
कानों में चुपके- चुपके से।
संदेश तेरा कुछ कहती है।।
आँखों में नव – आशायें।
अधरों पर मुस्कान लिए।।
हृदय – बंधन प्रीत -अगाढ।
सस्नेह प्रेम – सम्मान लिए।।
शीत चँद्रमा श्वेत धवल सा।
बदरा में छुप जा बैठा है।।
ना आने के दु:ख में तेरे देखो।
तज़ निशा मुख फेर बैठा है।।
नव- गीत प्रेम का गाकर मैं।
तुमको पास बुलाती हूँ।।
मन के अंधियारे अँगना में।
नित आशा दीप जलाती हूँ।।
सूनी -सूनी सी गलियों में।
अँखियाँ आस लगाती हैं।।
व्याकुल हृदय की ये गंगा।
अंश्रू बन बह- बह जाती हैं।।
रिमझिम सावन की बरखा में।
तुमको आवाज लगाती हूँ।।
सावन के इन झूलों पर।
मैं प्रेम की पेंग बढाती हूँ।।
-लक्ष्मी थपलियाल-
दे.दून,उत्तराखंड