परिश्रम से आगे बढ़ी हूँ, परिश्रम की कद्र जानती हूँ,
बुरे हालात में भी कैसे रखा जाता है सब्र जानती हूँ।
संस्कार रूपी जमीन से जुड़ी हुई हूँ तो क्या हुआ,
अहंकार के आसमान में उड़ने का हश्र जानती हूँ।
जिंदगी की राहों में नम्रता का होना बहुत जरूरी है,
कितना भयानक होता है क्रोध का असर जानती हूँ।
निचे से ऊपर उठना कोई आसान नहीं है इस दौर में,
हितैषी बन कर लोग कैसे खोदते हैं कब्र जानती हूँ।
हालात बदलने को दिन रात परिश्रम करती रही हूँ,
परिश्रम के सहारे बदल जाता है मुकद्दर जानती हूँ।
जिस मुकाम पर खड़ी हूँ वो परिश्रम का नतीजा है,
पर घमंड नहीं है क्योंकि घमंड का कहर जानती हूँ।
लोग पहचानने लगे हैं मेरे नाम, मेरी कलम से मुझे,
सुलक्षणा की आवाज पहुँच रही है घर घर जानती हूँ।
©® डॉ सुलक्षणा अहलावत