तीज के उपलक्ष्य में एक गीत…..
कैसे ये तीज मनाऊं मैं।
कैसे तो रीझ दिखाऊँ मैं।
बिन साजन सूना सावन है।
सूना ये मन का आंगन है।
धूमिल आंखों का काजल है
घिरता यादों का बादल है
तुझको तो सनम बुलाऊँ मैं।
कैसे तो तीज मनाऊँ मैं…….(१)
झूलों पर पींग भरें सखियाँ
यादें झरती रहती अँखियाँ
हाथों की मेहंदी चिड़ा रही।
सौंधी सी महक उड़ा रही।
जब तुझको पास न पाऊँ मैं।
कैसे तो तीज मनाऊँ मैं……..(२)
चंचल सी शोख हसीना सी।
पुरवा संग झूम सफीना सी।
पुरवा जब छेड़ा करती थी।
मीठी अँगड़ाई भरती थी।
अब गीत न कजरी गाऊं मैं।
कैसे तो तीज मनाऊँ मैं…..(३)
……..©अनहद गुंजन गीतिका®