गीत/नवगीत

तीज के उपलक्ष्य में एक गीत…..

 

 

कैसे ये तीज मनाऊं मैं।

कैसे तो रीझ दिखाऊँ मैं।

 

बिन साजन सूना सावन है।

सूना ये मन का आंगन है।

धूमिल आंखों का काजल है

घिरता यादों का बादल है

तुझको तो सनम बुलाऊँ मैं।

कैसे तो तीज मनाऊँ मैं…….(१)

 

झूलों पर पींग भरें सखियाँ

यादें झरती रहती अँखियाँ

हाथों की मेहंदी चिड़ा रही।

सौंधी सी महक उड़ा रही।

जब तुझको पास न पाऊँ मैं।

कैसे तो तीज मनाऊँ मैं……..(२)

 

चंचल सी शोख हसीना सी।

पुरवा संग झूम सफीना सी।

पुरवा जब छेड़ा करती थी।

मीठी अँगड़ाई भरती थी।

अब गीत न कजरी गाऊं मैं।

कैसे तो तीज मनाऊँ मैं…..(३)

 

……..©अनहद गुंजन गीतिका®

गुंजन अग्रवाल

नाम- गुंजन अग्रवाल साहित्यिक नाम - "अनहद" शिक्षा- बीएससी, एम.ए.(हिंदी) सचिव - महिला काव्य मंच फरीदाबाद इकाई संपादक - 'कालसाक्षी ' वेबपत्र पोर्टल विशेष - विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं व साझा संकलनों में रचनाएं प्रकाशित ------ विस्तृत हूँ मैं नभ के जैसी, नभ को छूना पर बाकी है। काव्यसाधना की मैं प्यासी, काव्य कलम मेरी साकी है। मैं उड़ेल दूँ भाव सभी अरु, काव्य पियाला छलका जाऊँ। पीते पीते होश न खोना, सत्य अगर मैं दिखला पाऊँ। छ्न्द बहर अरकान सभी ये, रखती हूँ अपने तरकश में। किन्तु नही मैं रह पाती हूँ, सृजन करे कुछ अपने वश में। शब्द साधना कर लेखन में, बात हृदय की कह जाती हूँ। काव्य सहोदर काव्य मित्र है, अतः कवित्त दोहराती हूँ। ...... *अनहद गुंजन*