लघुकथा

पत्नी में माँ का रूप देखा

वैसे तो हर नारी मॉँ होती ही है ,पर स्वयं की पत्नी में मॉँ का रूप दिखना बहुत बड़े सौभाग्य का विषय है ! हालांकि इसके पूर्व भी अनेक बार पत्नी में मैंने ममत्व देखा है,पर मैं केवल कल के वाकये को ही आधार बनाकर अपनी बात कह रहा हूं !
कल सुबह कॉलेज जाने की तैयारी कर रहा था ! कुछ सामान उठाने के लिए पहली मंज़िल पर बने अपने ” सारस्वत कक्ष ” में गया था कि सीढ़ियां उतरते समय,मेरा पैर लड़खड़ा गया,और मैं गिरने से बाल- बाल ,पर संभलकर धड़धड़ाता हुआ नीचे आ गया ! गिरा तो नहीं,पर पैर का पंजा मुड़ गया ! यह देखकर पत्नी एकदम घबरा गई ,और ” क्या हो गया,क्या हो गया ” ..कहती हुई…नाश्ता छोड़कर मेरी ओर लपकी,और मेरे पैर को मलने लगी(जबकि पैर में हल्की सी तात्कालिक मोच ही आई थी)! तत्काल ही उसने पैर में आयोडेक्स की मालिश की (वह भूल ही गई कि वह नाश्ता कर रही थी )!
उस समय मैंने पत्नी में भाव-आप्लावित मॉँ का रूप देखा ! उसके इस रूप को मैं बारम्बार प्रणाम करता हूं ! तभी तो नारी को देवी कहा जाता है !

प्रो. शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल[email protected]