कविता

बचपन के वो दिन

मुझे याद है
बचपन के वो दिन
कागज की कश्ती बनाकर
पानी मे तैराना,
बरसात के दिनों मे
उमडते घुमड़ते बादलों के बीच
कल्पना के घोड़े दौड़ाना,
मनचाहे चरित्रों को तलाशना,
हाँ मुझे याद है।
मुझे याद है
फर्श पर पानी का फैलाना,
छप-छप करना,
माँ का गुस्सा, दादी का प्यार
बहन का दुलार,
सब याद है मुझे।
मैं आज भी आकाश मे ताका करता हूँ,
बादलों के बीच
अपनी कल्पना तलाशा करता हूँ।
मुझे याद है
बरसात  के बाद
इन्द्रधनुष का दिखना,
उसके रंगों मे
अपने रंग को रंगना,
कहीं पीछे से
सूरज की किरणों का चमकना,
फिर सुनहरे बादलों मे
अपने सतरंगी सपने बुनना।
हाँ मुझे याद है
उन्ही बादलों के बीच
पशु पक्षियों की आकृति तलाशना,
पर्वत,नदी पेड़ों के चित्र सजाना।
मैं नहीं भूला अपना बचपन
फिर भी विवश हूँ
बचपन मे न लौट पाने के कारण।
चाहता हूँ
मैं फिर से बनाऊं
रेत के घरोंदें,
मिटटी में  खेलूं,
दौडूँ-भागूं ,लुका -छिपी खेलूं।
हाँ ! मैं बचपन मे लौटना चाहता हूँ।
— डॉ अ कीर्तिवर्धन