दिव्यांगों के आदर्श – श्री बच्चू सिंह (भाग 3)
बात तब की है, जब 1946 में कम्युनिस्ट, लीग, कांग्रेस, एससीएफ (शिड्यूल कास्ट फेडरेशन) के राजनीतिक विरोध और संचार पोत ‘तलवार’ पर मदनसिंह व मोहम्मद शरीफ की गद्दारी से क्रांति असफल होने के बाद ब्रिटिश राज फिर मजबूत हो चुका था। तलवार पोत पर आजाद हिन्द का जासूस 17 वर्षीय रेटिंग बलाई चंद दत्त था, जिसे 2 फरवरी 1946 को कमांडर-इन-चीफ आर्चबोल्ड के सामने आजाद हिन्द के नारे लगाने पर गिरफ्तार करके निलंबित कर दिया गया था, लेकिन किसी ने दत्त को बचाया नहीं था, तब सभी अचानक 18 फरवरी को दत्त के समर्थक कैसे बन गए, जबकि ब्रिटिश अधिकारियों का दुर्व्यवहार नया नहीं था? लेकिन इस नाटक से क्रांति समाप्त हो गई।
क्रांतिकारियों को सजा देने में ब्रिटिश शासन ने इतना ध्यान रखा कि केवल उनको ही सजा मिले जो हथियारबंद नहीं थे, क्योंकि हथियारबंद सैनिकों से दोबारा विद्रोह होने की संभावना थी। अनेक सैनिकों को ब्रिटिश शासन ने सेवा से बर्खास्त कर दिया, बहुतों को जेल भेज दिया। इन सैनिकों की किसी भी राजनीतिक दल या संस्था ने सुध नहीं ली। सरदार पटेल ने भी साथ देने से इंकार कर दिया था।इस असफल स्वतन्त्रता संग्राम के बाद 1946 में 23-24 वर्ष की आयु में बच्चू सिंह ने अघोषित रूप में वायुसेना छोड़ दी और भरतपुर लौटकर वे अपने बड़े भाई राजा ब्रजेन्द्र सिंह के सैन्य सचिव बने। वहाँ उन्होंने अपने अनुभव से भरतपुर राज्य की सेना को और अधिक मजबूत बनाया। ब्रिटिश शासन उनसे बहुत घृणा करता था और भरतपुर को सबक सिखाना चाहता था, लेकिन उस समय वे एक ऐसी रियासत के राजा को पदमुक्त करने की स्थिति में भी नहीं थे, जिसके पास टैंक, लड़ाकू विमान और सशस्त्र थल सेना थी और बच्चूसिंह के कारण वायुसेना भी आ गई थी। नये सैन्य विद्रोह ने ब्रिटिश राज को हिला दिया था और द्वितीय विश्वयुद्ध से कमजोर हुआ ब्रिटेन भी कोई सेना भेजने में असमर्थ था। अतः ब्रिटिश शासन ने मन मारकर यहाँ शांति को अपनाया था।
यह निश्चित था कि समय के साथ ब्रिटेन की स्थिति सुधर जाएगी, फिर वे किशनसिंह की तरह ब्रजेन्द्र सिंह का राज भी खत्म कर देंगे। अतः बच्चूसिंह ने समय रहते ब्रिटिशराज से निपटने की योजना बनाई। भरतपुर में कर्जन के समय से प्रसिद्ध हुआ बतख शिकार ब्रिटिश अधिकारियों का प्रिय खेल था, जिसे वहाँ के शासकों ने बनाए रखा था। जब 1946 में तत्कालीन वाइसराय लाॅर्ड वेवेल ने बतख शिकार का आयोजन फिर करवाया, तब भरतपुर को इसका मौका मिला।महाराजा ब्रजेन्द्र इंदुसिंह ने खुद अपने मित्रों देवास, रामपुर, जयपुर, कपूरथला, ग्वालियर के शासकों को बतख शिकार आयोजन में शामिल होने के लिए कहा। ग्वालियर में इन रियासती शासकों की मीटिंग हुई, वहीं ब्रजेन्द्र इंदुसिंह के सुझाव पर भारतीय मूल के उन छोटे अधिकारियों को भी साथ मिलाया गया, जो इन शासकों के मित्र थे।
जब सभी भरतपुर पहुंचे, तब ब्रिटिश अधिकारियों को नीचा दिखाने के लिए सामान्य रैंक के भारतीय अधिकारियों का ब्रिटिश कर्नल और जनरल रैंक से ऊपर दर्जे में स्वागत हुआ और बड़े तथा विशेष मेहमानों में रखा गया। दिसंबर 1946 में निर्धारित समय पर बतखों के शिकार की प्रतियोगिता हुई। वहाँ बच्चूसिंह ने खुद वाइसराय से बराबरी का व्यवहार किया और उनके बाद भारतीय मूल के मेजर रैंक अधिकारी को रखा गया, जबकि ब्रिटिश कर्नल और जनरल को पीछे और निम्न स्तर पर खड़ा करवाया गया। इस व्यवहार के विरुद्ध शिकायत करने पर बच्चूसिंह ने वायसराय लार्ड वेवेल को धमकाया, इससे वह बहुत डर गया।
राजनीति में अस्थिरता बनी हुई थी। ब्रिटेन की फूट डालो और राज करो की नीति से सामाजिक स्तर पर दंगे हो रहे थे। प्रशासन पर अस्थिर राजनीति भारी थी, पुलिस भी हड़ताल कर रही थी, और सेना अभी हुई असफल क्रांति से उभरी नहीं थी। इस समय जाट, अजगर और क्षत्रिय आंदोलन के नेता से मिली धमकी से घबराए हुए लाॅर्ड वेवेल ने भारत छोड़ने का प्लान तैयार कर लिया जिसका नाम रखा ‘आॅपरेशन मैडहाउस’। जब ब्रिटिश सरकार को वेवेल की योजना का पता चला, तो हाउस आॅफ काॅमन्स में भारत की स्वतन्त्रता की घोषणा करके माउंटबेटन को वाइसराय बनाकर भारत भेजा।
(क्रमशः)