गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

जिसे दिल का रोग लग जाता है उसको न कोई दवा लगे
दिन रात तड़पते रहते हैं कभी उनको न कोई दुआ लगे ।

फिरते हैं ये इश्क़ के मारे अपनी जान हथेली पर लेकर
तिनका तिनका लुट जाते हैं इन्हें जान से प्यारी वफा लगे ।

झुक जाता है सर अक्सर बस अपने महबूब की राहों में
क्या जाएं अब मंदिर मस्जिद ये इश्क़े-इबादत खुदा लगे ।

इश्क़ जिसे हो जाता है फिर उसकी नज़ाकत क्या कहिए
हो नूरे-मोहब्बत चाहत का दीवाना वो सबसे जुदा लगे ।

रहती है मोहब्बत उलझन में ये दुनिया वाले क्या सोचेंगे
जिसे दिल ने इबादत समझा वही बात जहां को खता लगे ।

छुप-छुपकर ‘जानिब’ हम भी अब दिल का रोग लगा बैठे
अब हमें यहाँ मत ढूंढ़ना नामुमकिन है जो मेरा पता लगे ।

— पावनी दीक्षित “जानिब”

*पावनी दीक्षित 'जानिब'

नाम = पिंकी दीक्षित (पावनी जानिब ) कार्य = लेखन जिला =सीतापुर