ऊंचे उड़ना ठीक नहीं
वक्त की शाख पे बैठ कर, इतना इठलाना ठीक नहीं।
फितरत इसकी टूटना है, तेवर को बदलना ठीक नहीं।
ठोकर खाओ मजबूत बनो, हम भी किसी से कम है क्या
मिजाज ठोकरे मारने का, लगता कुछ ये ठीक नहीं।।
वक्त की शाख पे………… बदलना ठीक नही।
किस्तियां उनकी भी फंसी, जिसे नाज था नाखुदाई पर।
मर कर वो जिन्दा भी हुये, जिसे नाज था अपनी दुहाई पर।
देखो ये बसन्ती ऋतु आई है, फिर भी छाया विरानापन –
मिटटी में है दबे खजानेें, ऊंचे उड़ना ठीक नहीं।।
वक्त की शाख पे………….. बदलना ठीक नहीं।
मरे हकीमों की कहानी, ये कूंचे तुमको सुनाएंगे।
रोग मिटाने वालों के, कई रोग ये तुमको दिखाएंगे।
इल्म तुम्हारा अच्छा है, अंदाज हैं कुछ बदले बदले-
नदियों के तुम माहिर हो, समन्दर में जाना ठीक नहीं।।
वक्त की शाख पे…………. बदलना ठीक नहीं।
बेवफा वक्त है ये, इसपे क्या मै नाज करूं।
सूरज कभी न डूबे, तो दुनिया पे मै राज करूं।
कहीं नगर हैं बह जाते, कहीं धूल का राज दिखा-
अति बडी भयानक है, पत्थर को बहाना ठीक नहीं।।
वक्त की शाख पे………… बदलना ठीक नहीं।
-राज कुमार तिवारी (राज)