गज़ल
बात कुछ ना थी बवंडर हो गए,
महल आलीशान खंडहर हो गए
वक्त के हाथों बचा ना कोई भी,
दफन कितने ही सिकंदर हो गए
थोड़ी शोहरत थोड़ी इज्ज़त क्या मिली,
वो जो कतरा थे समंदर हो गए
हो गए सीने से मेरे आर पार,
लफ्ज़ तेरे आज खंजर हो गए
भाई ही भाई का दुश्मन बन गया,
कैसे खौफनाक मंजर हो गए
खुदपसंद थे जो तवंगर वो बने,
खुदापसंद सारे कलंदर हो गए
— भरत मल्होत्रा
उम्दा रचना आदरणीय!!