`दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम – लघुकथा
अरे बनवारी लाल ! तुम इतने उदास -बदहवास से क्यों दिख रहे हो ? सब ठीक तो है न | तुम्हारा शोध कार्य कैसा चल रहा है ? सुना है तुम्हारे गाइड तो बहुत बड़े विद्वान हैं और बहुत ही कम समय में शोध-कार्य पूरा करवा देते हैं ?
बनवारी रुआंसा-सा होकर बोला – “ क्या बताऊँ मैडम ,कुछ कहते नहीं बनता, विद्वानों की बात न ही पूछो तो ही अच्छा है ”|
ऐसा क्या हुआ मुझे बताओ -“शायद मैं तुम्हारी कोई मदद कर सकूँ ”?
मेरे गाइड इतने विद्वान थे कि खुद बोल-बोल कर शोध ग्रन्थ लिखवा देते थे पर ???
पर क्या ? ?
वे हर रोज मिठाई मंगवाते थे , इसके बिना वे एक शब्द भी नहीं बताते थे | यहाँ तक तो ठीक था, मैनें जैसे -तैसे झेल लिया और थीसिस सबमिट कर दी | मैंने सोचा चलो अब तो पी एच डी की डिग्री मिल ही जाएगी |
तभी उन्होंने मुझे बुलाकर कहा -“ बनवारी सुनो ,मैंने तुम्हारा शोध कार्य संपन्न करवा दिया है , तुम आज ही मुझे बाजार लेकर चलो और मुझे मेरी पसंद का उपहार दिला दो” |
मैंने उन्हें अपनी विवशता बताने की कोशिश की कि अभी मेरी जेब में उपहार खरीदने लायक पैसे नहीं हैं ,लेकिन वे नहीं माने और बोले अभी चलो” |
हम एक घड़ी की दुकान गए , उन्होंने एक महँगी घड़ी पसंद कर ली | मैंने अपनी जेब टटोली किन्तु घडीं की कीमत से पांच सौ रूपये मेरे पास कम थे | मैं बड़ी दुविधा में था कि क्या करूँ ? गुरु जी नहीं मानेगे और कही उल्टा सीधा बोल दिया तो मेरी बड़ी बेइज्जती होगी |
“तब फिर क्या किया तुमने” ?
तब मैंने दूकान के मालिक से बात की-“ ये मेरे गुरु जी हैं और इन्हें यही घड़ी चाहिए लेकिन मेरे पास पांच सौ रूपये कम हैं ,आप मेरी इससे महँगी घड़ी रख लीजिये और इन्हें यह घड़ी दे दीजिये | मैं एक दो दिन में पैसे देकर अपनी घड़ी ले जाऊँगा” |
दूकानदार को मेरी दयनीय स्थिति पर तरस आ गया और वह सहमत हो गया | “ मैंने घड़ी खरीदकर महा- गुरु प्रो सूर्यभान को दे दी | वे खुश हो गए और मैंने गंगा नहा ली कि चलो अब तो पीछा छूटा ,लेकिन ” ???
लेकिन क्या ?“अब क्या हुआ ? पी एच डी की डिग्री तो मिल गई न ”?
उसने उच्छ्वास लेते हुए कहा -“ थीसिस रिजेक्ट हो गई ,परीक्षकों ने रिपोर्ट में लिखा कि इसमें किसी भी कोटेशन के रेफरेंस बुक का नाम नहीं दिया गया है, यह शोध स्तरीय नहीं है इसलिए पी एच डी की डिग्री नहीं दी जा सकती ”| इसके कारण मेरा प्रमोशन भी रुक गया |
मैडम, मैं ज़िन्दगी से निराश हो गया हूँ , मेरी स्थिति अब ऐसी हो गई है कि “दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम ”|
मैं भी सोच में पड़ गई कि क्या गुरुओं का स्तर इतना गिर गया है ??
-डॉ. रमा द्विवेदी