चले आओ कि तेरे बिन
चले आओ कि तेरे बिन कहीं अच्छा नहीं लगता |
कि सपने देखती तो हूँ मगर सच्चा नहीं लगता |
बहुत कोशिश किया मैनें कि रह लूँ मैं तुम्हारे बिन ,
मगर तुम बिन मुझे जीना यहाँ पक्का नहीं लगता ||
चलो माना कि ये बंधन के धागे हैं अभी कच्चे ,
मगर दिल से जुड़ा धागा मुझे कच्चा नहीं लगता |
कि रह रह कर धड़कता दिल तुम्हारे ही लिये मेरा
निगाहों को भी मेरे कोई भी तुम सा नहीं लगता ||
कि यूँ तो चाँदनी भी चंद्रमा की है प्रिया साजन
मगर सूरज किरण सा कोई भी नाता नहीं लगता ||
©किरण सिंह
Waah Mam..