मधुगीति : गुदगुदा प्यार में कभी जाता
गुदगुदा प्यार में कभी जाता,
गुनगुना कान में कभी जाता;
आके चुपके से कभी कुछ कहता,
साँवरा हरकतें अजब करता !
ग़ज़ब की वाँशुरी सुना जाता,
कभी वह नज़र भी कहाँ आता;
अदद अंदाज से कभी मिलता,
कभी बंदा नवाज़ बन जाता !
नब्ज़ हर वक़्त देखता रहता,
धड़कनें हृदय की सदा सुनता;
छिपा उससे कहाँ है कुछ रहता,
सोचा जो उर में वो भी सुन लेता !
सोचने भी कभी कहाँ देता,
किए प्रस्तुत यथेष्ट वह रहता;
यथोचित देता कभी हर लेता,
हार पर मानने कहाँ देता !
रुला कर गोद तुरत ले लेता,
अहं को आँकते क्रिया करता;
शुद्ध ‘मधु’ मानसी चक्र करता,
सुदर्शन चक्र भी कभी लखता !
— गोपाल बघेल ‘मधु’