ढोंगी बाबा (छन्दमुक्त कविता )
धर्म के आड़ में अधर्मी पनप जाते हैं।
मंदिर में बैठकर पुजारी बन जाते हैं।
बाबा के नाम पर सभा को बुलाकर।
राम नाम से काम-वासना पे आते हैं॥
प्रभु का अस्तित्व कलंकित बन रहा है।
धर्म के नाम पे व्यभिचार बढ रहा है।
बढ रहा है बाबाओं का तुच्छ विचार,
वासनाओं की दुकान यहाँ सज रहा है॥
वेद-पुराण की पंक्तियां इन्हें केसे लगे।
काम भोगी बन राम नाम कैसे भजे।
गीता उपदेश बचन को सामने रखकर
मदिरापान कर ईश्वर में ये कैसे रमे॥
ज्ञान-दान,धर्म-कर्म कर सभी बांधते।
ढोंगी बाबा ये भक्त संग सब नांचते।
ऐसे बाबाओं की कहानी खत्म होगी कब
गुरु भक्त को रहेंगे कब तक नाशते॥
रचनाकार
©रमेश कुमार सिंह ‘रुद्र’
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